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180... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
105.
शील सप्तमी व्रत
106.
समकित चौबीशी व्रत
107.
108.
109.
110.
111.
97. चन्दन षष्ठी व्रत
98.
षोडश कारण व्रत
99. संकट हरण व्रत
100. कौमार सप्तमी व्रत
101. नन्द सप्तमी व्रत
102. निर्दोष सप्तमी व्रत
103. मुकुट सप्तमी व्रत
104. मोक्ष सप्तमी व्रत
समवसरण व्रत
सर्वार्थसिद्धि व्रत
तुलना - उपरोक्त तपों में से बहुत से व्रतों के नाम श्वेताम्बर परम्परा मान्य तपों से मिलते-जुलते हैं। उक्त तपों में एकावली, कनकावली, आयंबिल, वर्धमान आदि आगमिक तपों का भी निर्देश है। साथ ही इनमें तीर्थंकर प्रणीत, गीतार्थ कथित एवं भौतिक उपलब्धियों की अपेक्षा किये जाने वाले - इस तरह तीनों प्रकार के व्रतों का भी समावेश होता है। इनकी वर्तमान परम्परा में रवि व्रत, सुगंध दशमी, पंचमेरू, कर्म निर्जर, अनन्तव्रत, रत्नत्रय व्रत, त्रिलोक तीज, आकाश पंचमी, श्रुत पंचमी, मुकुट सप्तमी आदि तप विशेष रूप से प्रचलित हैं।
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सुखकारण व्रत
सुदर्शन व्रत सौवीर भक्ति व्रत
उपर्युक्त सर्वतोभद्र आदि व्रत विधियों का सामान्य स्वरूप निम्न है - 1. सर्वतोभद्र व्रत पाँच खण्ड का एक चौकोर कोष्ठक बनायें और एक से लेकर पाँच तक के अंक उसमें इस तरह भरें कि सब ओर से गिनने पर पन्द्रह-पन्द्रह उपवासों की संख्या निकले। इन पन्द्रह उपवासों में पाँच का गुणा करने से उपवासों की संख्या पचहत्तर और पाँच पारणों का पाँच से गुणा करने पर पारणों की संख्या पच्चीस होती है। इसमें एक उपवास पारणा, दो उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, चार उपवास पारणा और पाँच उपवास पारणा । इस प्रकार यह सर्वतोभद्र व्रत सौ दिन में पूर्ण होता है। इस तप के करने से समस्त कल्याण रूप निर्वाण पद की प्राप्ति होती है।
2. बसन्तभद्र व्रत
एक सीधी रेखा में पाँच से लेकर नौ तक अंक लिखें। उन सबका जोड़ पैंतीस होता है। इस प्रकार बसन्तभद्र व्रत में 35 उपवास होते हैं। उनका क्रम यह है कि पाँच उपवास पारणा, छह उपवास पारणा, सात उपवास पारणा, आठ उपवास पारणा और नौ उपवास पारणा । इस व्रत में 35
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