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जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...177
दिगम्बर परम्परा में प्रचलित तप दिगम्बर आम्नाय में तप शब्द 'व्रत' संज्ञा से व्यवहृत है। यहाँ तप को व्रत कहा गया है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा की भाँति इस परम्परा में भी अनेकविध तपों का विवेचन प्राप्त होता है। हमें जिन तपों का स्वरूप प्राप्त हुआ है, उनका विधिवत वर्णन करते हुए शेष का नामोल्लेख मात्र करेंगे।
हरिवंश पुराण में वर्णित तप सूची- इसमें लगभग 37 व्रतों का वर्णन है। जिनके नाम ये हैं1. सर्वतोभद्र (श्लो. 52, सर्ग 34) 20. सप्तसप्तमतपो व्रत (91) 2. बसन्तभद्र (56)
21. अष्ट अष्टम या नव-नवमादि व्रत (92) 3. महासर्वतोभद्र (57)
22. आचाम्ल वर्द्धमान तप (95) 4. त्रिलोकसार (59)
23. श्रुतव्रत (97) 5. वज्रमध्य (62)
24. दर्शनशुद्धि व्रत (98) 6. मृदंगमध्य (64)
25. तप:शुद्धि व्रत (99) 7. मुरजमध्य (66)
26. चारित्रशुद्धि (100) 8. एकावली (67)
27. एक कल्याण व्रत (110) 9. द्विकावली (68)
28. पंचकल्याण व्रत (111) 10. मुक्तावली (69)
29. शीलकल्याण व्रत (112) 11. रत्नावली (69)
30. भावनाविधि व्रत (112) 12. रत्न मुक्तावली (72)
31. पंचविंशति कल्याण भावना विधि 13. कनकावली (74)
व्रत (114) 14. द्वितीय रत्नावली (76)
32. दुःखहरण व्रत (118) 15. सिंहनिष्क्रीडित (78-80) 33. कर्मक्षय विधि व्रत (121) 16. नन्दीश्वर व्रत (84)
34. जिनेन्द्रगुण संपत्ति विधि व्रत (122) 17. मेरूपंक्ति व्रत (86)
35. दिव्यलक्षण पंक्ति विधि व्रत (123) 18. शातकुम्भ व्रत (87)
36. धर्मचक्र विधि व्रत परस्पर कल्याण 19. चान्द्रायण व्रत (90)
विधि व्रत (124)
चारित्रसार (151/1) पृ. 137 तप प्रकरण पर उपरोक्त में से केवल 10 व्रतों का निर्देश है।