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तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक...xiii परम्पराओं से प्रभावित होती रही है और उसमें तप जो एक मात्र आत्म विशुद्धि का कारण था उसे भौतिक उपलब्धि का मार्ग भी बनाया गया।
साध्वी सौम्यगुणा श्री ने मेरे निर्देशन में जैन परम्परा के विविध आयामों पर शोध कार्य किया है और उसी के अन्तर्गत उन्होंने जैन परम्परा में तप की अवधारणा विषय को लेकर भी एक ग्रन्थ के प्रणयन का प्रयत्न किया है। मुझे यह लिखते हुए प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि उन्होंने डी. लिट हेतु जो शोध महाग्रन्थ लिखा है वह मूलभूत ग्रन्थों को आधार बनाकर प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है। सौम्यगुणाजी की श्रमशीलता एवं अध्ययन मग्नता का ही परिणाम है कि आज उन्होंने जैन विधि-विधान के प्रत्येक पृष्ठ को अनावृत्त कर दिया है। इन ग्रन्थों को यदि जैन विधि-विधानों का Encyclopedia कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आप इसी प्रकार अन्य रहस्यमयी विषयों के पर्दों को भी उद्घाटित कर उन्हें जन सामान्य के बीच लाएं। सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच उनका यह प्रयत्न न केवल अनुमोदनीय है अपितु अभिप्रेरक भी है।
मेरा विश्वास है कि वे इसी प्रकार प्रामाणिक साहित्य का सृजन करते हुए श्रुताराधना करती रहेंगी तथा उनका यह ग्रन्थ तप के सम्बन्ध में साधकों का सम्यक मार्गदर्शन करते हुए आत्म विशुद्धि के मार्ग पर अभिप्रेरित करेगा।
डॉ. सागरमल जैन प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर