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तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...51 10. सर्वगात्र परिकर्म - शरीर के किसी अंग की देखभाल (ध्यान) नहीं
रखना।
11. विभूषा विप्रमुक्त - शरीर के सभी संस्कार, सज्जा, विभूषा आदि से मुक्त रहना।
उत्तराध्ययनसूत्र में कायक्लेश तप के बाईस प्रकार उल्लिखित हैं जिन्हें परीषह कहा गया है। इन परीषहों में अन्यकृत एवं स्वेच्छा अस्वीकृत दोनों प्रकार के कष्टों का अन्तर्भाव है। परीषहों के नाम इस प्रकार हैं84
1. क्षुधा परीषह - भूख सहन करना 2. पिपासा परीषह - प्यास सहन करना 3. शीत परीषह – सर्दी सहन करना 4. उष्ण परीषह - गर्मी सहन करना 5. दंशमशक परीषह - डांस, मच्छर आदि के उपद्रवों को सहना 6. अचेल परीषह - नग्न्यत्व कष्ट को सहना 7. अरति परीषह - कष्टों से घबराकर संयम के प्रति उदासीन न होना 8. स्त्री परीषह - ब्रह्मचारी पुरुष को स्त्री का तथा स्त्री को पुरुष का उपसर्गादि सहन करना 9. चर्या परीषह - पाद विहार के कष्टों को सहना 10. नैषेधिकी परीषह - स्वाध्याय भूमि के कष्ट को सहना 11. शय्या परीषह- शयन भूमि सम्बन्धी कष्ट सहन करना 12. आक्रोश परीषह - किसी के दुर्वचनों को सहन करना 13. वध परीषह - लकड़ी आदि के प्रहार को सहन करना 14. याचना परीषह - भिक्षा आदि में आगत कष्टों को सहन करना 15. अलाभ परीषह - वस्त्रादि की याचना में आगत कष्टों को सहन करना 16. रोग परीषह - रोग आदि कष्टों को समभाव से सहन करना 17. तृणस्पर्श परीषह - घास आदि के स्पर्श का कष्ट सहन करना 18. जल्ल परीषह - शरीर पर मैल जम जाये उसे सहन करना 19. सत्कार-पुरस्कार परीषह - पूजा-प्रशंसा में तटस्थ रहना 20. प्रज्ञा परीषह – तीव्र बुद्धि का गर्व नहीं करना 21. अज्ञान परीषह - बुद्धिहीनता का दुःख सहन करना 22. दर्शन परीषह - सम्यक्त्व भ्रष्ट मिथ्या मतों के बीच मन को स्थिर रखना।
उत्तराध्ययनसूत्र में वीरासन आदि उत्कृष्ट आसनों को कायक्लेश तप के प्रकारों में गिना गया है।65 दशवैकालिकचूर्णि में कायक्लेश के मुख्य पांच प्रकार बतलाये गये हैं-1. वीरासन 2. उत्कटुकासन 3. भूमिशयन 4. काष्ठपट्टशयन 5. केशलोच।66