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________________ तप के भेद - प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य... 35 यहाँ यह बात स्पष्टतया समझ लेनी चाहिए कि मुनि भले ही उदर पूर्ति हेतु ऊँच-नीच या मध्यम कुलों में भिक्षाटन करता है, किन्तु शुद्ध-अशुद्ध आहार के सम्बन्ध में पूर्ण विवेक रखता है। जैन मुनि की भिक्षाचरी को माधुकरीवृत्ति कहने का मुख्य कारण यह है कि जैसे भ्रमर एक फूल से दूसरे पर, दूसरे से तीसरे पर इस तरह कई फूलों पर घूमता हुआ थोड़ा-थोड़ा रस पीता है और इस वृत्ति से वह स्वयं सन्तुष्ट तो हो ही जाता है तथा फूलों को भी कोई हानि नहीं पहुंचाता, वैसे ही जैन श्रमण गृहस्थ के घर में उनके अपने लिए बने हुए भोजन आदि में से थोड़ा-थोड़ा ग्रहण कर अपना जीवन निर्वाह भी कर लेता है और गृहस्थ को कष्ट भी नहीं होता, अतः श्रमण की भिक्षाचर्या को माधुकरी वृत्ति कहा गया है। 41 यह माधुकरी वृत्ति बौद्ध परम्परा में और वैदिक परम्परा में भी आदर्श मानी गयी है। 42 - मुनि की भिक्षाचर्या को वृत्तिसंक्षेप कहने का ध्येय यह है कि उसे मन इच्छित आहार प्राप्त नहीं हो सकता। कभी गर्म आहार की आवश्यकता होने पर ठण्डा मिल जाता है तो कभी रसप्रधान आहार की जरूरत होने पर रुक्ष- नीरस आहार की प्राप्ति हो जाती है। इस स्थिति में जैसा मिल गया उसी में सन्तुष्ट रहता है, अपनी वृत्तियों का संकोच करता है। इसलिए भिक्षाचर्या को 'वृत्तिसंक्षेप' की संज्ञा दी गयी है। यहाँ एक प्रासंगिक प्रश्न यह उठता है कि भिखारी भी मांगकर उदर पूर्ति करता है और मुनि भी याचना द्वारा जीवन निर्वाह करता है, भिखारी और मुनि दोनों को भिक्षुक शब्द से सम्बोधित करते हैं तथा दोनों के लिए 'भिक्षा' शब्द का व्यवहार होता है फिर इन दोनों में क्या अन्तर है ? यदि श्रमणाचार विषयक ग्रन्थों का अध्ययन करें तो ज्ञात होता है कि दोनों की भिक्षा लेने की विधि और प्रक्रिया में बहुत बड़ा अन्तर है । भिखारी की कोई आचार संहिता नहीं होती । उसे जो कुछ भी मिल जाता है चाहे सचित्त हो या अचित्त पदार्थ, चाहे नशीले द्रव्य हों या पैसा आदि सब कुछ ले लेता है । उसे जो भी वस्तु प्राप्त होती है वह संग्रह करके रखना चाहता है; किन्तु श्रमण संग्रह नहीं करता। भिखारी दीन वृत्ति से याचना करता है, किन्तु श्रमण अदीन भाव से भिक्षा लेता है। भिखारी दानप्रदाता के गुणों की प्रशंसा करता है, किन्तु श्रमण किसी भिक्षा दाता की गुणगाथा नहीं गाता। यदि भिखारी को भिक्षा न मिले तो वह दान न देने वाले को
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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