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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि... 375
काल में किस दिन कौनसा तप किया जाना चाहिए- इस सम्बन्ध में विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर में ही स्पष्ट कहा गया है। इन दोनों में तपक्रम को लेकर सामाचारी भेद है, जैसे कि विधिमार्गप्रपा में अंगसूत्र और श्रुतस्कन्ध के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा दिन में आयंबिल तथा शेष दिनों में नीवि तप करने का उल्लेख किया गया है। प्राचीन सामाचारी में उल्लिखित 'योगयन्त्र' में यही तप-क्रम दिया गया है, जबकि आचारदिनकर में शेष दिनों में एकान्तर आयंबिल - नीवि तप करने का निर्देश दिया गया है । तपागच्छ की वर्तमान परम्परा भी आचारदिनकर का ही अनुसरण करती है। इस परम्परा में एकान्तर आयंबिल-नीवि ही करवाए जाते हैं, किन्तु योगदिन के पन्द्रह-पन्द्रह दिन बीतने पर पाली पलटुं की विधि करते हैं और इसमें क्रमशः दो दिन आयंबिल या दो दिन नीवि करने की छूट देते हैं, उसके बाद पुनः आयंबिल - नीवि के क्रम से तप करते हैं। इससे अतिरिक्त विधि का उल्लेख आचारदिनकर में नहीं हैं।
यद्यपि भगवतीसूत्र, निशीथ अध्ययन एवं महानिशीथसूत्र की योग तप विधि दोनों ग्रन्थों से समान रूप से कही गई है । जैसा कि भगवतीसूत्र के योग विशिष्ट प्रकार की कल्पाकल्प विधिपूर्वक किए जाते हैं, निशीथसूत्र के योग एकान्तर आयंबिल-नीवि के क्रम से पूर्ण होते हैं तथा महानिशीथसूत्र के योग में पैंतालीस दिन आयंबिल ही किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त विधिमार्गप्रपा में द्वीपसागरप्रज्ञप्ति को छोड़कर शेष प्रकीर्णक सूत्रों को नीवि तप द्वारा वहन करने का निर्देश है जबकि आचारदिनकर के अनुसार इन प्रकीर्णक सूत्रों को आयंबिल तप द्वारा वहन करना चाहिए। इस प्रकार कुछ आगम सूत्रों के तपक्रम में पूर्ण समानता भी है।
आगाढ़ - अनागाढ़ की दृष्टि से - विधिमार्गप्रपा और आचारदिनकर में आगाढ़ एवं अनागाढ़ सूत्रों के विभाजन को लेकर भी यत्किंचिद् भेद है। जैसे कि विधिमार्गप्रपा में प्रश्नव्याकरण सूत्र को आगाढ़ योग कहा गया है 26 किन्तु आचार दिनकर में इसे अनागाढ़ योग की कोटि में माना गया है। 27
प्रकीर्णक संख्या की दृष्टि से - प्राचीन सामाचारी में इक्कीस प्रकीर्णक सूत्रों के योगोद्वहन करने का सूचन है। इसमें जीतकल्प एवं पंचकल्प को भी सम्मिलित किया गया है। विधिमार्गप्रपा में सत्रह प्रकीर्णक सूत्रों, सुबोधा. सामाचारी में सात प्रर्कीणक सूत्रों एवं आचारदिनकर में बीस प्रकीर्णक सूत्रों के