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________________ आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ...xiii हैं अत: वर्तमान में जो आगम जिस रूप में उपलब्ध है उनके आकार आदि को देखकर योगोद्वहन के पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। स्थानकवासी एवं तेरापंथी परम्परा में योगोद्वहन की यह प्रक्रिया प्राय: समाप्त ही है फिर भी इसके कुछ अच्छे पक्ष हैं जिन्हें ध्यान में रखकर इसे पुनर्जीवित भी किया जा सकता है। योगोद्वहन के प्रामाणिक उल्लेख आचारांग, सूत्रकृतांग, भगवती आदि कई आगम ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। इनमें महानिशीथसूत्र को तो इसका अधिकृत ग्रन्थ भी कहा जा सकता है। इस विधि के उल्लेख चूर्णि साहित्य में भी मिलते हैं। यदि परवर्ती ग्रन्थों के आलोक में देखा जाए तो आचार्य जिनप्रभसूरि की विधिमार्गप्रपा और आचार्य वर्धमानसरि के ग्रन्थों में इनके उल्लेख मिलते हैं। ___साध्वी सौम्यगुणा श्रीजी ने प्राचीन और परवर्ती सभी योगोद्वहन संबंधी ग्रन्थों का अध्ययन कर प्रस्तुत कृति में जो कार्य किया है वह निश्चय ही प्रशंसनीय है क्योंकि यह एक कठिन आगमोक्त विषय है। जिस विषय पर हिन्दी साहित्य भी नहींवत ही उपलब्ध होता है। इसी के साथ योगोद्वहन संबंधी विधिविधान योग्य आचार्य या मुनि भगवंतों के द्वारा ही करवाए जाते हैं अत: इसके सूक्ष्म अभिप्रायों को सम्यक् रूप से समझना दुष्कर था परन्तु सौम्यगुणाजी ने अपने अतुल मनोबल के आधार पर विविध आचार्यों से चर्चा करके इसका प्रामाणिक स्वरूप प्रस्तुत किया है इसकी अनुमोदना है। वर्तमान में हमारा दुर्भाग्य यह है कि हमारे क्रियाकाण्ड सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ या तो आज उपलब्ध ही नहीं है अथवा प्राचीन प्राकृत, संस्कृत भाषा में लिखे होने के कारण अध्ययन की प्रक्रिया मर गई है। साध्वी सौम्यगुणा श्रीजी का यह प्रयत्न इसलिए भी स्तुत्य है कि इससे विधि-विधान के प्रति जन चेतना जागृत होगी। आज कर्मकाण्डों में से जीवन्त पक्ष लुप्त होता जा रहा है उसे पुनर्जीवित करना होगा। साध्वीजी साहित्य क्षेत्र में सेवा करती रहें और जैन विद्या के भण्डार को समृद्ध करती रहें इन्हीं शुभ भावनाओं के साथ। डॉ. सागरमल जैन प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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