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प्रवर्त्तिनी पदस्थापना विधि का सर्वांगीण स्वरूप... 257
15. आचारदिनकर, भा. 1, पृ. 119
16. (क) पंचवस्तुक, गा. 1318, 1321
(ख) विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 213-214 (ग) धर्मसंग्रह अधिकार 3/138, पृ. 520 17. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 5 / 1-2,5-6 18. वही, 5/3-4,7-8
19. वही, पृ. 359
20. व्यवहारसूत्र, 5 / 13, पृ. 362
21. भगवतीसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 8/6/10 22. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 5 / 2, 6, 13 23. बृहत्कल्पभाष्य, 6111 की चूर्णि
24. व्यवहारभाष्य, 2310, 2314 की टीका 25. निशीथभाष्य, 5332 की चूर्णि 26. सामाचारीप्रकरण, पृ. 29 27. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 206 28. आचारदिनकर, पृ. 119 29. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 206 30. आचारदिनकर, पृ. 119 31. वही, पृ. 119
32. प्राचीनसामाचारी, पृ. 29 33. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 206
34. आचारदिनकर, पृ. 119
35. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 206
36. (क) पवत्तिनी नाम उपज्झाया वुच्चति । पाचित्तिय पालि, पृ. 448
(ख) पातिमोक्ख, भिखुनी पाचित्तिय, 74-75
उद्धृत - जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ, पृ. 139