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अध्याय- 10
प्रवर्त्तिनी पदस्थापना विधि का सर्वांगीण स्वरूप
अर्हत् शासन में मुनियों के लिए जैसे सात पदों की व्यवस्था है वैसे साध्वियों के लिए निम्न पाँच पदों का संविधान है -
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1. प्रवर्त्तिनी 2. अभिषेका
श्रमणी वर्ग का नेतृत्व करने वाली ।
प्रवर्त्तिनी पद से पूर्व अधिकार सम्पन्न साध्वी।
3. स्थविरा वृद्ध साध्वी। यह पद दीर्घ दीक्षा पर्याय या वय के आधार पर स्वतः प्राप्त होता है ।
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4. भिक्षुणी - तरूणी या प्रौढा साध्वी ।
5. क्षुल्लिका बाल या शैक्ष साध्वी।
बृहत्कल्पभाष्य' एवं निशीथभाष्य' आदि में उक्त पदों के स्पष्ट प्रमाण हैं । इसके अतिरिक्त छेद साहित्य में श्रमणी के लिए गणिनी, महत्तरिका, गणावच्छेदिका, प्रतिहारी एवं थेरी वगैरह पदों का भी उल्लेख मिलता है। ये सभी पद चारित्र धर्म की अभिवृद्धि, शासन प्रभावना, श्रुत की सम्यक आराधना, श्रमणी वर्ग पर अनुशासन आदि उद्देश्यों को लक्ष्य में रखते हुए दिये जाते हैं।
जैन धर्म की श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में प्रवर्त्तिनी और महत्तरा ये दो पद ही प्रचलन में है। दिगम्बर संघ में भिक्षुणी, क्षुल्लिका, प्रवर्त्तिनी, गणिनी आदि शब्द विशेष रूप से प्रचलित हैं किन्तु पद व्यवस्था के रूप में गणिनी या प्रवर्त्तिनी पद का ही व्यवहार है, शेष सामान्य रूप में व्यवहृत हैं। क्षुल्लिकासाध्वी पद की प्रारम्भिक अवस्था है । आर्या, भिक्षुणी, निर्ग्रन्थी आदि साध्वी के पर्यायवाची नाम हैं।
प्रवर्त्तिनी शब्द का अर्थ एवं गूढ़ार्थ परिभाषाएँ
प्रवर्त्तिनी शब्द 'प्र' उपसर्ग, 'वृत्' धातु, णिच्' एवं 'णिन्' प्रत्यय से निष्पन्न है। मूलत: प्र+वृत् + णिच् + ण्वुल्+टाप् के संयोग से प्रवर्त्तिका शब्द बनता है।