SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 236...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में क्रियाएँ आचार्य पदस्थापना के समान श्रावकों द्वारा की जानी चाहिए। संघपूजा, अट्ठाई महोत्सव आदि सभी कार्य आचार्यपदानुज्ञा के तुल्य करने चाहिए। इस तरह का विस्तृत वर्णन अन्य ग्रन्थों में उल्लेखित नहीं है।17 महत्तरा अधिकार की अपेक्षा- महत्तरा पदस्थ साध्वी के मुख्य रूप से कौन से अधिकार होते हैं? इस विषयक विधिमार्गप्रपा में सामान्य एवं आचारदिनकर में अपेक्षाकृत विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। जैसे- महत्तरा या प्रवर्त्तिनी इस पद की अनुज्ञा के बाद स्वयं भी वस्त्र-पात्र आदि ग्रहण कर सकती हैं और स्वगृहीत वस्त्रादि को अपेक्षित शिष्या मण्डली में भी वितरित कर सकती हैं। साध्वियों को दीक्षा देना, गृहस्थों को सम्यक्त्व व्रत, बारह व्रत आदि दिलखाना साधु एवं साध्वियों को अनुशासित करना आदि कार्य कर सकती हैं, परन्तु उन्हें मुनिदीक्षा देने एवं प्रतिष्ठा करवाने की अनुज्ञा नहीं होती है। इसी के साथ निश्रावर्ती सुयोग्य साध्वियों को प्रवर्तिनीपद पर स्थापित कर सकती है, किन्तु महत्तरापद देने का अधिकार नहीं है। देववन्दन की अपेक्षा- सामाचारी मतभेद के कारण सामाचारीप्रकरण में नौ स्तुतियों, तिलकाचार्य, सुबोधासामाचारी, आचारदिनकर में आठ स्तुतियों एवं विधिमार्गप्रपा में अठारह स्तुतियों द्वारा देववन्दन करने का निरूपण है। इसके अतिरिक्त वासदान, कायोत्सर्ग, सप्तथोभवन्दन, लघुनन्दी श्रवण, आसनदान, मन्त्रदान, नामकरण आदि मूल प्रक्रियाओं में लगभग समानता है। कुछ आचार्य नन्दीसूत्र सुनाने के बाद तीन प्रदक्षिणा दिलवाते हैं, फिर कायोत्सर्ग करवाते हैं। उसके पश्चात लग्नवेला में स्कन्धकरणी, आसन दान, मन्त्र श्रवण आदि के अनन्तर पुन: तीन प्रदक्षिणा दिलवाते हैं ऐसा सामाचारी संग्रह में उल्लेख है।18 __यदि हम जैन, हिन्दू एवं बौद्ध इन त्रिविध धर्मों की अपेक्षा इस विधि का अध्ययन करते हैं तो परिज्ञात होता है कि जैन धर्म के श्वेताम्बर संघ की कुछ परम्पराओं जैसे- खरतरगच्छ, तपागच्छ आदि में आज भी यह पद प्रचलित है। स्थानकवासी एवं तेरापंथी सम्प्रदाय में इस पद की व्यवस्था लगभग नहीं है यद्यपि तेरापंथ में साध्वी प्रमुखा का पद होता है जो महत्तरा के समान ही है। दिगम्बर संघ में गणिनी पद प्रचलित है, जिसे महत्तरा के तुल्य माना गया है।19
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy