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आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...221
82. (क) दशाश्रुतस्कन्ध, पृ. 26-27.
(ख) व्यवहारभाष्य, 4084-4123 83. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 3/5 84. बृहत्कल्पभाष्य, 708 85. सामाचारीप्रकरण, पृ. 26 86. पंचवस्तुक, 932 87. विधिमार्गप्रपा- सानुवाद, पृ. 193 88. आचारदिनकर, भा. 1, पृ. 112. 89. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 3/6. 90. आचारदिनकर, पृ. 112 91. पंचवस्तुक, 934-945 92. प्राचीनसामाचारी, पृ. 26 93. सन्मतिप्रकरण, गा. 66 94. दशवैकालिकसूत्र, 9/1/1-10. 95. व्यवहारभाष्य, मुनि दुलहराज, 2526 96. वही, 2578-79, 2600 97. आचारदिनकर, पृ. 112 98. वही, पृ. 75, 76, 112 99. अणुणा जोगो अणुजोगो, अणु पच्छाभावओ य थेवे या __जम्हा पच्छाऽभिहियं, सुत्तं थोवं च तेणाणु।
बृहत्कल्पसूत्र, 1/190 100. युज्यते संबध्यते भगवदुक्तार्थेन सहेति योगः।
अनुयोगद्वार, प्रस्तावना, पृ. 23 101. अणुसूत्रं महानर्थस्ततो महतोर्थस्याणुना सूत्रेण योगो अनुयोगः।
अभिधानराजेन्द्रकोश, भा. 1/पृ.340 102. सूत्रस्यार्थेन सहानुकूलं योजनमनुयोगः
अथवा अभिधेये व्यापार: सूत्रस्य योगः। अनुकूलोऽनुरूपो वा योगो अनुयोग:
यथा घटशब्देन घटस्य प्रतिपादनमिति।
आवश्यकनियुक्ति मलयगिरिटीका, 127