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________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...213 4. आचारं ग्राह्यात्याचिनोत्यर्थान आचिनोति बुद्धमिति वा। जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 488 5. सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो, गच्छस्स मेढि भूओय। गणतत्तिविप्पमुक्को, अत्थं वाएइ आयरिओ। भगवतीसूत्र, अभयदेववृत्ति, पत्रांक 3 6. संस्कृत-हिन्दी कोश, पृ. 141 7. बृहत्कल्पभाष्य, 708 8. व्यवहारभाष्य, 1932 9. पंचविहं आयारं, आयरमाणा तहा पभासंता। आयारं दंसंता, आयरिया तेण वुच्चंति।। आवश्यकनियुक्ति, 994 10. सुत्तत्थतदुभयादि गुणसम्पन्नो अप्पणो गुरुहिं गुरुपदे त्थावितो आयरिओ। दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 219 11. जो वा अन्नोऽवि, सुत्तत्थतदुभयगुणेहिं । उववेओ गुरुपएण, ठाविओ सोऽवि आयरिओ चेव। दशवैकालिक जिनदासचूर्णि, पृ. 318 12. आचार्य सूत्रार्थप्रदं तत्स्थानीयं वान्यं ज्येष्ठार्यम्। दशवैकालिक हारिभद्रीय टीका, पृ. 252 13. आचिनोति च शास्त्रार्थ माचारे स्थापयत्यपि । स्वयमाचरते यस्मादाचार्यस्तेन कथ्यते।। जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भा. 2, पृ. 54 14. आयारं पंचविहं चरदि, चरावेदि जो णिरदिचार। उवदिसदि य आयारं, एसो आयारवं णाम।। भगवतीआराधना, गा. 421 15. पंचाचारसमग्गा, पंचिंदिय दंति दप्पणिद्दलणा। धीरा गुण गंभीरा, आयरिया एरिसा होति। नियमसार, गा. 73 16. आचरन्ति तस्माद् व्रतानित्याचार्याः। सर्वार्थसिद्धि, 9/24/866
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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