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________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप... 197 जब हम उत्तरवर्ती साहित्य का अवलोकन करते हैं तब नवपदपूजा, गुरुगुणषट्त्रिंशत्त्रिंशिका आदि ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, किन्तु उनमें आचार्य के गुणों वगैरह का ही वर्णन है। इसके सिवाय विभिन्न परम्पराओं से सम्बद्ध संकलित कृतियों में भी प्रस्तुत विधि देखी जाती है, किन्तु वह पूर्व निर्दिष्ट ग्रन्थों के आधार से ही संकलित की गयी है। समष्टि रूप में कहा जा सकता है कि आगम युग से लेकर उत्तरवर्ती साहित्य तक अनेकों ग्रन्थों में आचार्य का स्वरूप, उनके अतिशय आदि का निरूपण किया गया है, किन्तु पदस्थापना विधि का स्वरूप विक्रम की 8वीं शती से 15वीं शती पर्यन्त ग्रन्थों में ही मिलता है। इस मध्य कालवर्ती साहित्य में भी विधिमार्गप्रपा को सर्वाधिक मूल्य दिया गया है। यह बहुचर्चित एवं प्रामाणिक ग्रन्थ भी है। अत: इसी ग्रन्थ के अनुसार आचार्यपदानुज्ञा - विधि चर्चित करेंगे। आचार्य पदस्थापना विधि खरतरगच्छ मान्य विधिमार्गप्रपा में उल्लिखित आचार्यपदस्थापना की मूल विधि निम्नानुसार है। 145 पूर्व दिन की विधि आचारदिनकर के निर्देशानुसार पद स्थापना के शुभ दिन की पूर्व सन्ध्या में गुरु नूतन आचार्य के निमित्त बिना सिले हुए वेष को तलवार की ढाल के मध्य में रखकर गणिविद्या के द्वारा उसे अभिमन्त्रित करें। फिर रात्रि में उन्हें ऊँचे स्थान पर रख दें। श्रावकगण उस वेश के समीप गीत, वाद्य आदि महोत्सव द्वारा रात्रि जागरण करें। 146 प्रारम्भिक विधि - लग्न दिवस के पहले दिन या उस दिन भावी आचार्य अपना केशलोच करें। उसके बाद ब्रह्ममुहूर्त में कालग्राही मुनि प्राभातिक काल ग्रहण करें। 147 फिर रात्रिक प्रतिक्रमण करें। प्रतिलेखन करें । उपाश्रय के चारों ओर सौ-सौ कदम की भूमि शुद्ध करें। फिर भावी आचार्य प्रक्षालन द्वारा अंगशुद्धि करें तथा गुरु उस शिष्य के दाहिने हाथ में स्वर्णकंकण एवं अंगूठी पहनाकर नवीन वस्त्र पहनाएं। तदनन्तर मुहूर्त्त का समय निकट आने पर स्थापनाचार्य और पद दाता गुरु के योग्य दो आसन की प्रतिलेखना करें। फिर गुरु और शिष्य (भावी आचार्य) दोनों ही स्वाध्याय प्रस्थापना करें। उस दिन चैत्य में, पौषधशाला में या मनोहर उद्यान में समवसरण की स्थापना करवाएं। फिर समवसरण (नन्दी रचना) के समीप दो आसन बिछाएं और संघट्टा ग्रहण करें।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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