SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...195 उन्हें सर्वप्रथम स्थान दिया जाये वगैरह बिन्दुओं को लेकर आचार्य का नामोल्लेख हुआ है।125 स्थानांगसूत्र में भिन्न-भिन्न विषयों के प्रसंग में 'आचार्य' का नाम निर्देश है। जैसे- देवलोक में उत्पन्न हुआ जीव शीघ्र ही तीन कारणों से मनुष्यलोक में आना चाहता है और आ भी सकता है। उनमें पहला कारण पूर्व जन्म उपकारी आचार्य, उपाध्याय आदि पदस्थ मुनियों को वन्दन-सत्कार आदि करना बतलाया है।126 इसी तरह देव द्वारा परितप्त होने के तीन कारणों में पहला कारण आचार्य की सन्निधि में श्रुत का पर्याप्त अध्ययन नहीं कर पाने का दुःख होना बतलाया है।127 इसी भाँति गुरु-सम्बन्धी तीन प्रत्यनीक (प्रतिकूल व्यवहार करने वाले) में पहला नाम आचार्यप्रत्यनीक है।128 ___ आचार्य के लिए गण में रहते हुए संग्रहणीय सात स्थान के हेतु निर्दिष्ट हैं।129 उनके पाँच-सात अतिशयों का निरूपण है।130 दसविध वैयावृत्य में आचार्य का नाम सर्वप्रथम गिना गया है। अनेक उपमाओं द्वारा आचार्य के चारचार प्रकार बतलाए हैं।131 इस प्रकार आचार्य महिमा, आशातना, स्वरूपादि की दृष्टि से उनका नामोल्लेख हुआ है। समवायांगसूत्र में मोहनीयकर्म बन्धन के कारणभूत तीस स्थानों में आचार्य की आशातना करने को चौबीसवाँ स्थान माना है।132 भगवतीसूत्र में कहा गया है कि जो आचार्य अपने कर्तव्य और दायित्व का समुचित वहन करते हैं वे उसी भव में या एक, दो या अधिकतम तीन भव में मुक्त हो जाते हैं।133 ज्ञाताधर्मकथा में आचार्य की सन्निधि का महत्त्व बताते हुए निरूपित किया है कि जो साधु-साध्वी आचार्य के निकट प्रव्रजित होकर इन्द्रियों का संयम नहीं रखते, वे इसी भव में चतुर्विध संघ द्वारा हीलना को प्राप्त होते हैं और परलोक में भी दुःखी होते हैं।134 इसी तरह के अनेक उद्धरण और भी दिए जा सकते हैं। सार रूप में यह कहा जा सकता है कि मूलागमों में आचार्य की प्रभावशीलता, श्रेष्ठता एवं उनकी आशातना के दुष्परिणाम आदि का ही चित्रण है। पदस्थापना विधि का कोई उल्लेख नजर नहीं आता है।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy