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________________ 188...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अभिधेय का कथन योग है और उसका सूत्र के अनुरूप होना अनुयोग कहलाता है अथवा सूत्र का अर्थ के बाद कथन होता है, सूत्र संक्षिप्त होता है, इसलिए उसका नाम अनु है। उस अनु का अपने प्रतिपाद्य के साथ संयोजन करना अनुयोग है। 104 स्वरूपतः सूत्र के अनुकूल अर्थ का संयोजन करना अनुयोग है। जो मुनि सूत्रानुरूप अर्थ की योजना करने में कुशल होते हैं उन्हें अनुयोगाचार्य कहा जाता है। अनुयोग के एकार्थवाची आवश्यकनिर्युक्ति में अनुयोग के पाँच समानार्थी शब्द बताए गए हैं- 105 1. अनुयोग – सूत्र के अनुरूप अर्थ का योग करना अनुयोग कहलाता है। 2. नियोग के साथ अर्थ का निश्चित योग करना नियोग है। सूत्र 3. भाषा सूत्र - 4. विभाषा - एक सूत्र के विविध अर्थों का प्रतिपादन करना अथवा एक पद के दो, तीन आदि अर्थ घटित करना विभाषा है, जैसे अश्व शब्द की व्याख्या करते समय कहना - जो खाता है, वह अश्व है (अश्नोति इति अश्व)। जो तीव्र गति से दौड़ता है, परन्तु श्रान्त नहीं होता, वह अश्व है। 106 5. वार्तिक के अर्थ का समग्रता से प्रतिपादन करना वार्तिक है। वार्तिक का दूसरा नाम भाष्य है। भाष्य, आगम सूत्रों के गूढ़ार्थ को समझने का महत्त्वपूर्ण अंग है। सूत्र विशेषावश्यकभाष्य की टीका में वार्तिक (भाष्य) के निम्न अर्थ प्रतिपादित हैं107_ के अर्थ का कथन करना भाषा है। - (i) सूत्र की व्याख्या वार्तिक या भाष्य है जैसे- विशेषावश्यकभाष्य । (ii) श्रुत में पारंगत गणधर आदि के द्वारा वस्तु का उसकी विभिन्न पर्यायों की अपेक्षा से जो व्याख्यान किया जाता है, वह वार्तिक है। (iii) सूत्र के आशय के आधार पर अर्थ का कथन करना वार्तिक है। (iv) सूत्र की गुरु- परम्परा से प्राप्त व्याख्या वार्तिक है । वार्तिक (अनुयोग ) के अधिकारी विशेषावश्यकभाष्य में वार्तिक के तीन अधिकारी बतलाए गए हैं 108_ 1. उत्कृष्ट श्रुतज्ञानी जैसे - गणधर । 2. युगप्रधान आचार्य जैसे - भद्रबाहुस्वामी ।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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