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________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...183 सन्मतिप्रकरण कहता है कि जैसे-जैसे गुरु की बहुश्रुत के रूप में लोक प्रसिद्धि होती है वैसे-वैसे शिष्य सम्पदा बढ़ती जाती है। यदि गुरु सिद्धान्त के अध्येता और उनका अर्थ करने में सनिश्चित न हो, तो वह सिद्धान्त का शत्र होता है अत: आचार्य गुणान्वित एवं गुणदर्शी होना चाहिए।93 आचार्य की आशातना के दुष्परिणाम आगमकारों ने आचार्य को तीर्थङ्कर तुल्य स्थान दिया है। जहाँ तीर्थङ्कर परमात्मा प्रत्यक्ष रूप में विद्यमान नहीं हो वहाँ आचार्य की अनुज्ञा 'तित्थयर समो सूरी' तीर्थङ्कर के समान प्रवर्तित होती है। अत: उनकी अवहेलना, अवज्ञा या लघुता करने का प्रयत्न करना भी भारी आशातना है। आशातना का तात्पर्यार्थ - सब ओर से विनाश करना या कदर्थना करना है। गुरु की आशातना से शिष्य के आत्मधन की ही हानि होती है, प्रत्युत गुरु को किसी प्रकार से नुकसान नहीं पहुँचता है। ___ दशवैकालिकसूत्र में आचार्य की आशातना के दुष्परिणामों का मार्मिक चित्रण उपस्थित करते हुए कहा गया है94 जो गुरु (आचार्य) की हीलना करते हैं वे गुरु की आशातना करते हुए मिथ्यात्व को प्राप्त करते हैं। जो शिष्य गर्व या प्रमादवश गुरु के समीप विनय नहीं सीखता है उसका अहंकार बांस फल की भांति उसी के ज्ञानादि वैभव के विनाश के लिए होता है। कई साधु वयोवृद्ध होते हुए भी ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम की न्यूनता के कारण स्वभाव से ही अल्प प्रज्ञाशील होते हैं इसके विपरीत कई अल्पवयस्क होते हुए भी श्रुत और प्रज्ञा से सम्पन्न होते हैं। इस अपेक्षा से जो शिष्य ज्ञान में न्यून, किन्तु आचार में सुदृढ़ गुरु की अवज्ञा करते हैं उनके सद्गुण उसी तरह भस्मीभूत हो जाते हैं जिस प्रकार अग्नि क्षण मात्र में ईंधन के ढेर को भस्म कर देती है। जिस प्रकार सर्प के बच्चे को छेड़ने वाला अपना अहित कर बैठता है, उसी प्रकार आचार्य को अल्पवयस्क समझ कर जो उनकी आशातना करता है वह एकेन्द्रिय आदि जातियों में जन्म-मरण करता रहता है। अत्यन्त क्रुद्ध हुआ आशीविष सर्प जीवन नाश से अधिक और क्या कर सकता है? परन्तु आचार्य को अप्रसन्न करने से बोधिलाभ नहीं होता है और मोक्ष प्राप्ति में भी बाधा उत्पन्न होती है।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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