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मेघनाद
अनुशासन एक सुगठित प्रणाली है। वैयक्तिक प्रगति का प्रश्न हो या सामुदायिक विकास का, अनुशासन का होना अनिवार्य है। अनुशासन का मूल उद्देश्य समस्याओं का निराकरण, हृदय परिवर्तन एवं वैचारिक प्रदूषणों से मुक्त होना है।
अनुशासन वह सुनियोजित प्रवृत्ति है जिसके माध्यम से व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र को एकता सूत्र में बांधा जा सकता है।
अनुशासन, व्यवस्था और मर्यादा से समन्वित होता है। अनुशासन आधार है और व्यवस्था आधेय हैं। अनुशासन किया जाता है जबकि व्यवस्था का सूत्रपात मर्यादा से होता है। ___ यदि व्यावहारिक धरातल पर विचार करें तो सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास के लिए अनुशासन एक मूल आवश्यक तत्त्व है। चाहे राजशासन हो या धर्मशासन, घर हो अथवा ऑफिस हर क्षेत्र में अनुशासन का महत्त्व एवं प्रभुत्व है। अनुशासन की धुरि पर ही प्रगति की यात्रा गतिमान रहती है। यह प्रणाली सीमित एवं मर्यादित जीवन जीने की शिक्षा देती है। __जैन संस्कृति में संघ व्यवस्था के कई आधार तत्त्व रहे हैं। आचार्य, उपाध्याय, गणी, प्रवर्तक आदि पदों का उद्भव व्यवस्थामूलक ध्येय को लेकर ही हुआ है। जैन संघ को उन्नति के शिखर पर पहुँचाने में आचार्य आदि पदवीधरों का अमूल्य योगदान रहा है।
साध्वी सौम्यगणाजी द्वारा आलेखित शोध प्रबन्ध का यह सप्तम भाग पदव्यवस्था से सम्बन्धित है। इसमें आचार्य आदि पदस्थ मुनियों के कर्त्तव्य, लक्षण, उपयोगिता, पद स्थापना विधि आदि अनेक अनछुए विषयों का सरस, सबोध एवं हृदयग्राही शैली में प्रतिपादन किया गया है जो गृहस्थ एवं श्रमण, उभय वर्गीय जिज्ञासुओं के लिए ज्ञान की नयी रश्मियाँ प्रसरित करता रहेगा।
मंगलाकांक्षिणी आर्या शशिप्रभा श्री