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156...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
महानिशीथ में निक्षेप की अपेक्षा आचार्य के निम्न चार प्रकार प्रतिपादित है38
1. नामाचार्य - जो नाम मात्र से आचार्य हो।
2. स्थापनाचार्य – किसी आचार्य की प्रतिकृति के रूप में मूर्ति, फोटो, चित्र आदि।
3. द्रव्याचार्य - जो वर्तमान में आचार्य पद पर स्थित नहीं है, किन्तु भूतकाल में थे अथवा भविष्यकाल में होंगे वे द्रव्याचार्य कहलाते हैं।
4. भावाचार्य - आचार्य के समग्र गुणों से युक्त भावाचार्य कहे जाते हैं।
इहलौकिक-पारलौकिक हित की अपेक्षा से आचार्य के चार विकल्प इस प्रकार हैं
1. कुछ आचार्य इहलोक में हितकारी होते हैं, परलोक में नहीं -
जो शिष्य के लिए वस्त्र, पात्र, आहार आदि अपेक्षाओं को पूरा करते हैं, किन्तु सारणा-वारणा नहीं करते।
2. कुछ आचार्य परलोक में हितकारी बनते हैं, इहलोक में नहीं -
जो शिष्यों के द्वारा प्रमाद किये जाने पर विधि-निषेध का समुचित प्रयोग तो करते हैं, किन्तु आहारादि की समुचित व्यवस्था नहीं करते। ____ 3. कुछ आचार्य इहलोक एवं परलोक दोनों में हितकारी बनते हैं -
जो शिष्यों के लिए आहारादि की व्यवस्था और सारणा-वारणा दोनों करते हैं।
4. कुछ आचार्य इहलोक और परलोक दोनों में हितकारी नहीं होते हैं
जो उपधि, आहार आदि के द्वारा भी गच्छ पर अनुग्रह नहीं करते हैं और सारणा-वारणा भी नहीं करते हैं।39
गीतार्थ एवं सारणा की अपेक्षा से आचार्य के चार प्रकार निम्नांकित हैं - 1. कोई आचार्य अगीतार्थ है और गच्छ की सारणा भी नहीं करते। 2. कोई आचार्य अगीतार्थ है किन्तु गच्छ की सारणा करते हैं। 3. कोई आचार्य गीतार्थ है किन्तु गच्छ की सारणा नहीं करते। 4. कोई आचार्य गीतार्थ है और गच्छ की सारणा भी करते हैं।
भाष्यकर्ता संघदासगणि ने इस बात को समझाते हुए कहा है कि जैसे कोई देश महामारी या उपद्रव आदि से आक्रान्त हो जाये, वहाँ का राजा व्यसनी या