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136...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में 1. शिष्य पर अनुग्रह करना 2. शिष्य को उपदेश देना 3. पात्र देना 4. चीवर प्रदान करना 5. शिष्य रूग्णावस्था में हो तो यथा समय जलादि देना।95
मिलिन्दप्रश्न में उपाध्याय (शिक्षक) के निम्नलिखित पच्चीस कर्तव्य प्रतिपादित हैं96___1. शिष्य का यथोचित ध्यान रखना 2. सतर्कता रखने योग्य कृत्यों का उपदेश देना 3. कर्त्तव्याकर्त्तव्य का सदा उपदेश देते रहना 4. शिष्य के शयन आदि का ध्यान रखना 5. शिष्य के रूग्ण होने पर उसकी सेवा करना 6. शिक्षार्थी ने क्या पाया क्या खोया? इसका ध्यान रखना 7. शिक्षार्थी के चरित्र को विशिष्ट रूप से जानना 8. भिक्षापात्र में जो मिले उसे बांटकर खाना 9. शिष्य को सदा उत्साहित करते रहना 10. सत्संगति का निर्देश करना 11. अमुक गांव में जा सकते हों, ऐसा सूचित करना 12. अमुक प्रान्तों में विहार (पदयात्रा) कर सकते हो, ऐसा निर्देश देना 13. अमुक के साथ बातचीत न करने का सूचन करना 14. शिक्षार्थी के अपराधों को क्षमा करना 15. शिष्य को उद्यम के साथ शिक्षाभ्यास करवाना 16. अनवरत रूप से ज्ञानार्जन करवाना 17. शिक्षार्थी की त्रुटियों को छिपाना नहीं 18. शिक्षार्थी को मुष्टि नहीं दिखाना 19. शिष्यों से पुत्रवत् स्नेह करना 20. सदैव यह प्रयत्न करना कि शिष्य अपने उद्देश्य से पतित न हो जाए 21. शिक्षा के सभी आयामों से उसे अभिवृद्ध करना 22. शिक्षार्थी के साथ मैत्री भाव रखना 23. विपदग्रस्त स्थिति में शिष्य का त्याग नहीं करना 24. शिक्षा देने योग्य सीख में भूल नहीं करना 25. शिष्य को धर्म से गिरते हुए देख उसे सम्भालना अथवा पतित होने से बचाना।
बौद्ध मान्यतानुसार दस वर्ष या इससे अधिक काल तक भिक्षु जीवन का पालन करने वाला शिष्य उपाध्याय पदस्थ (शिक्षक) हो सकता है।
इस प्रकार बौद्ध पद्धति में उपाध्याय के लक्षण, कर्तव्य आदि का समुचित विवेचन प्राप्त होता है तथा जैन एवं बौद्ध दोनों धाराओं में उपाध्याय को आदर्श गुरु के रूप में स्वीकार किया गया है। इनमें मूल अन्तर यह है कि आचार्य को प्रथम एवं उपाध्याय को द्वितीय स्थान दिया गया है जबकि बौद्ध-परम्परा में उपाध्याय को प्रथम एवं आचार्य को द्वितीय स्थान प्राप्त है।
निष्कर्ष है कि जैन, सनातनी एवं बौद्ध तीनों परम्पराओं में उपाध्याय की नियुक्ति है, यद्यपि उनके उद्देश्यों और कर्तव्यों में यत्किञ्चित वैभिन्य है।