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________________ 126...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में • उपाध्याय अर्थात शिक्षक। एक प्रधान शिक्षक (HOD) किस प्रकार अपने विभाग (Department) या गच्छ का कार्य भार सम्भाले, इस क्षेत्र में सही दिशा मिलती है। • अयोग्य को योग्य और योग्य को सफलता के चरम तक निस्वार्थ भाव से किस प्रकार लाया जा सकता है इसके लिए उपाध्याय श्रेष्ठ उदाहरण है। • एक व्यवस्थापक को सम्पूर्ण व्यवस्था किस प्रकार सम्भालनी चाहिए, अपने कर्तव्यों का निरपेक्ष भाव से वहन करते हुए कार्य में किस तरह सफलता मिल सकती है इसका सुगम मार्ग उपाध्याय पद के द्वारा प्राप्त हो सकता है। • उपाध्याय स्वयं तो मैनेजमेण्ट या प्रबन्धन गुरु होते ही हैं किन्तु समस्त शिष्य मण्डली एवं संघ में भी वैसी ही व्यवस्था की स्थापना करते हैं। • जिस प्रकार उपाध्याय अन्य गच्छ से आगत मुनि आदि को वाचना देकर निर्मल एवं उदार भाव से ज्ञानदान करते हैं वैसे ही सामाजिक जीवन में उदारता एवं सहयोग के भाव सभी के प्रति रखे जाएँ तो सामाजिक उत्थान एवं देश के विकास में विशेष सहयोग प्राप्त हो सकता है। यदि वर्तमान समस्याओं के सन्दर्भ में उपाध्याय पद के प्रभाव का अध्ययन करें तो आज शिक्षा जगत में उत्पन्न होती समस्याएँ जैसे-शिक्षा का व्यापारीकरण, भौतिकीकरण, गुरु-शिष्य सम्बन्धों में बढ़ती औपचारिकता, अध्यापकों की बढ़ती स्वार्थवृत्ति, शिष्यों में बढ़ती उद्दण्डता एवं उच्छृखलता को रोकने में उपाध्याय की निरपेक्ष अध्ययन शैली बहपयोगी हो सकती है। वर्तमान शिक्षा का हेतु मात्र अर्थोपार्जन होने से समाज में आर्थिक प्रगति भले ही हो रही हो परन्तु नैतिक एवं मौलिक दृष्टि से समाज का पतन ही हो रहा है। ऐसी स्थिति में उपाध्याय आध्यात्मिक ज्ञान दान से समाज का आध्यात्मिक विकास करते हैं जैसे उपाध्याय आचार्य के समस्त कार्यों में उनको सहयोग करते हैं तथा उन्हें सुझाव भी प्रदान करते हैं और समस्त साधु-साध्वी मण्डल को ज्ञान दान का कार्य भी करते हैं वैसे ही यदि समाज में निरपेक्ष एवं निष्पक्ष भाव से कार्य किये जायें तो प्रत्येक क्षेत्र में समाज को सफलता प्राप्त हो सकती है। उपाध्यायपद-विधि का ऐतिहासिक अनुशीलन जैन संस्कृति में उपाध्याय का विशिष्ट स्थान है। देव, गुरु और धर्म में उपाध्याय का पद मध्यस्थ है। वे मध्यवर्ती होकर देव-धर्म की पहचान कराते हैं।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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