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उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप...113 से जाज्वल्यमान सूर्य गगन मण्डल में शोभा पाता है, उसी प्रकार निर्मल ज्ञान रूपी किरणों से मिथ्यात्व और अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले उपाध्याय जैन संघ रूपी गगन में सुशोभित होते हैं। ___11. पूर्णचन्द्र - जिस प्रकार ग्रहों, नक्षत्रों और तारागणों से घिरा हुआ चन्द्रमा शरद-पूर्णिमा की रात्रि को समस्त कलाओं से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार उपाध्याय साधुगण रूप ग्रहों से, साध्वीगण रूप नक्षत्रों से, श्रावकश्राविका रूप तारामण्डल से घिरे हुए ज्ञान आदि सकल कलाओं से परिपूर्ण होता है।
12. सुरक्षित कोष्ठागार - जिस प्रकार मूषक आदि के उपद्रव रहित और सुदृढ़ द्वारों से अवरूद्ध कोठार सुरक्षित एवं अनेक प्रकार के धान्यों से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार उपाध्याय गच्छवासी जनों के लिए सुरक्षित एवं निश्चय व्यवहार रूप दृढ़ किवाड़ों से तथा ग्यारह अंग और बारह उपांग के ज्ञान रूप धान्यों से परिपूर्ण होते हैं।
13. सुदर्शन जम्बूवृक्ष - जिस प्रकार जम्बूद्वीप के अधिष्ठाता अनादृत देव का सुदर्शन नामक जम्बूवृक्ष सब वृक्षों में श्रेष्ठ होता है उसी प्रकार उपाध्याय आर्य क्षेत्र के साधुओं में अमृत फल तुल्य श्रुतज्ञान युक्त एवं देव पूज्य होने से श्रेष्ठ होते हैं।
14. सीता नदी - जिस प्रकार. नीलवन्त वर्षधर पर्वत से निःसृत जल प्रवाह से परिपूर्ण एवं समुद्रगामिनी सीता नदी पाँच लाख बत्तीस हजार नदियों में श्रेष्ठ हैं उसी प्रकार उपाध्याय भी वीर हिमाचल से निःसृत निर्मल श्रुतज्ञान रूपी जल से पूर्ण, मोक्ष रूप-महासमुद्रगामी एवं समस्त श्रुतज्ञानी साधुओं में श्रेष्ठ होते हैं। ___ 15. मन्दर मेरू - जिस प्रकार सभी पर्वतों में सुमेरू पर्वत अनेक उत्तम
औषधियों से एवं चार वनों से शोभित होता है उसी प्रकार उपाध्याय अनेक लब्धियों एवं चतुर्विध संघ से शोभित होते हैं। ___16. स्वयंभूरमण समुद्र - जिस प्रकार स्वयम्भूरमण समुद्र अक्षय और नानाविध रत्नों से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार उपाध्याय नानाविध ज्ञानादि रत्नों से परिपूर्ण होते हैं।
निर्विवादत: उपाध्याय ज्ञानदीप को प्रज्वलित रखते हुए श्रुत-परम्परा को