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उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप...111 23.) अरिहन्त के 12 गुण, सिद्ध के 8 गुण एवं 5 प्रकार की भक्ति के ज्ञाता होने से (12+8+5 = 25) गुण धारक है।
24.) 15 प्रकार के सिद्ध एवं 10 त्रिक के परिज्ञाता होने से (15+10 = 25) गुण युक्त है।
25.) 16 आगार एवं संसारी जीव के 9 प्रकार के स्वरूप को जानने वाले होने से (16+9 = 25) गुण धारी है।
इस प्रकार उपाध्याय 25x25= 625 गुणों से युक्त होते हैं। उपाध्याय (बहुश्रुत) की उपमाएँ
किसी भी श्रेष्ठ या निकृष्ट वस्तु स्वरूप को समझने-समझाने के लिए उपमान (उदाहरण) का प्रयोग किया जाता है क्योंकि प्रसिद्ध वस्तु के साथ जब उस वस्तु की तुलना की जाती है तो उसके गुण धर्म का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है। तदर्थ उत्तराध्ययनसूत्र के ग्यारहवें अध्ययन में बहुश्रुत (उपाध्याय बहुश्रुती होते हैं) को सोलह उपमाएँ दी गयी हैं। उनके आधार पर उपाध्याय की विशेषताओं का स्पष्ट आभास होता है वे निम्नानुसार हैं-26 ___1. शंख - जैसे शंख में भरा हुआ दूध अपने और अपने आधार के गुणों के कारण दोनों प्रकार से सुशोभित होता है अर्थात वह अकलुषित और निर्विकार रहता है। जैसे वासुदेव के पञ्चजन्य शंख की ध्वनि का श्रवण करने मात्र से शत्रु की सेना भाग जाती है, उसी प्रकार उपाध्याय द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान नष्ट नहीं होता है, प्रत्युत अधिक शोभा देता है एवं उपाध्याय के उपदेश की ध्वनि सुनकर पाखण्ड और पाखण्डी पलायन कर जाते हैं।
2. काम्बोज अश्व - जिस प्रकार कम्बोज देश में उत्पन्न अश्वों में कन्थक अश्व शील आदि गुणों से युक्त और वेग (स्फूर्ति) में श्रेष्ठ होता है तथा दोनों ओर वादिंत्रों द्वारा सुशोभित होता है उसी प्रकार उपाध्याय श्रुत, शीलादि गणों और जातिमान गुणों से श्रेष्ठ होता है तथा स्वाध्याय की मधुर ध्वनि रूप वादिंत्र के घोष से शोभायमान होते हैं।
3. शूर-सुभट - जिस प्रकार अश्व पर आरूढ़ हुआ शूरवीर योद्धा दोनों ओर से (अगल-बगल या आगे-पीछे) होने वाले नान्दीघोष (विजयवाद्यों या जयकारों) से सुशोभित होता है उसी प्रकार उपाध्याय भी स्वाध्याय के मांगलिक स्वरों से सुशोभित होता है अथवा जैसे भाट,चारण और बन्दीजनों की