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________________ 90...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जिसके एक भी शिष्य नहीं हैं एवं जिसने उपर्युक्त श्रुत का अध्ययन भी नहीं किया है, वह गण धारण के अयोग्य है। यदि किसी मुनि के पास शिष्य संपदा है, परन्तु वह बुद्धिमान एवं श्रुत सम्पन्न नहीं है अथवा अवधारित श्रुत को विस्मृत कर चुका हो, तो वह भी गणधारण के अयोग्य है, किन्तु किसी को वृद्धावस्था (60 वर्ष से अधिक) होने के कारण श्रुत विस्मृत हो गया हो तो वह श्रुत सम्पन्न ही कहा जाता है और गणधारण कर सकता है। भाष्यकार ने शिष्य संपदावान को द्रव्य पलिच्छन्न और श्रुत सम्पन्न को भाव पलिच्छन्न कहा है। साथ ही भाव पलिच्छन्न को ही गणधारण करके विचरण करने का अधिकार दिया है। 15 भाष्यकर्ता ने यह भी स्पष्ट किया है कि 1. विचरण करते हुए वह स्वयं को एवं अन्य मुनियों को ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की शुद्ध आराधना करने - करवाने में समर्थ हो । 2. जनसाधारण को अपने ज्ञानबल, बुद्धिबल एवं वचनबल से धर्माभिमुख कर सकता हो । 3. अन्य मत से भावित कोई भी व्यक्ति प्रश्न - चर्चा करने के लिए आ जाये तो यथोचित उत्तर देने में समर्थ हो, ऐसा मुनि गण प्रमुख के रूप में संघटन प्रमुख होकर विचरण कर सकता है। 16 आचार्य मधुकरमुनि के अनुसार भी जो भिक्षु धर्म प्रभावना के लक्ष्य से गण को धारण करता है उसमें भाष्योक्त गुण होना आवश्यक है यानी भावी गणधर को द्रव्य और भाव दोनों पलिच्छन्न से युक्त होना चाहिए।17 क्योंकि जो द्रव्य पलिच्छन्न (शिष्य सम्पदा) से रहित होगा, वह गण ( शिष्यादि समूह) के अभाव में क्या धारण करेगा? जो द्रव्य संग्रह से परिहीन होता है वह शैक्ष आदि मुनियों द्वारा निश्चित ही त्यक्त हो जाता है अतः शिष्यादि संग्रह के बिना कोई गणधारण के योग्य नहीं हो सकता, अतएव जो भिक्षु आहार, वस्त्र आदि की लब्धि एवं आदेय वचन से युक्त है, परिपूर्ण देह वाला है, लोक में सत्कार योग्य है, बुद्धिमान है, नव दीक्षित मुनियों द्वारा पूज्य है तथा सामान्य लोगों द्वारा भी सम्माननीय है वह गणधारण के योग्य होता है । 18 जो भाव पलिच्छन्न (श्रुतज्ञान) से रहित है, वह विनय आदि धर्म का प्रवर्तन नहीं कर सकता क्योंकि उसके लिए वाचन आदि होना आवश्यक है। श्रुत सम्पदा से रहित साधु वाचन की प्रवृत्ति कैसे कर सकता है? भाव पलिच्छन्न
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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