________________
52...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
पव्वइए, तप्पभिर्इं च णं मम समणा नो आढायंति जाव नो संलवन्ति। अदुत्तरं च णं मम समणा निग्गंथा राओ पुव्वरत्तावस्तकालसमयंति वायणाए पुच्छणाए जाव पज्जुवासइ। ज्ञाताधर्मकथा, संपा. मधुकरमुनि, 1/1/162
******
63. बृहत्कल्पसूत्र, 4/10-11 64. व्यवहारसूत्र, 10/22-36
65. निशीथसूत्र, 19/20-22
66. उत्तराध्ययनसूत्र, 11/4-5
67. दशवैकालिकसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 9/4/7
68. नन्दीसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 115/2, 5, 3
69. व्यवहारभाष्य - सानुवाद, मुनि दुलहराज, गा. 1784-1785, 2340-2343
70 बृहत्कल्पभाष्य, संपा. पुण्यविजयजी, गा. 5208, 5209
71. निशीथभाष्य की चूर्णि, 6240-43, 6230, 6233, 6236
72. पंचवस्तुक, 973-1019
73. प्राचीनसामाचारी, पृ. 29
74. तिलकाचार्यसामाचारी, पृ. 45-46
75. सुबोधासामाचारी, पृ0 21
76. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 187-192
77. आचारदिनकर, पृ. 110-111
78. (क) बृहत्कल्पभाष्य, 779
(ख) विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 187
79. आचारदिनकर, 110
80. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 188
81. आचारदिनकर, 110-111
82. (क) विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 189 (ख) आचारदिनकर, 111
83. विधिमार्गप्रपा, पृ. 189-191
84. (क) विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 187 (ख) आचारदिनकर, पृ. 110-111
85. अनगारधर्मामृत, अ. 9, पृ. 672-673