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________________ श्रुतज्ञान की यात्रा के सहभागी श्री शान्तिपालजी भंसाली परिवार यह संसार रत्नों की राशि है । अनेक मानव रत्न की भाँति इस सृष्टि को अपने सत्कर्मों से रोशन करते हैं। कुछ लोग कर्म को ही धर्म मानते हैं तो कुछ धर्म को कर्म और कर्म भी सत्कर्म को ही मानते हैं। इसी श्रृंखला में एक कर्मयोगी हैं श्रावकरत्न श्री शान्तिपालजी भंसाली। आपका जन्म कोलकाता शहर में 19 नवम्बर 1932 के दिन हुआ । धर्म परायणा मातु श्री कस्तूरी बाई ने एक माली की तरह आपके जीवन का सत्संस्कारों से सींचन किया। उसी के परिणामस्वरूप आप एक समाज प्रेरक वटवृक्ष के रूप में खड़े हैं। स्वावलंबन, आपके जीवन का स्वाभाविक गुण है। इसी वजह से आपने बचपन में ही अपना कारोबार शुरू कर दिया था और अपनी पढ़ाई का पूरा खर्चा भी खुद ही उठाते थे। आजादी के समय आपने R.S.S. के एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में भी कार्य किया। जीवन के अनेक उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए आज आपने व्यापारिक, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में अपना अद्भुत वर्चस्व बनाया है। पावापुरी, पंचायती मन्दिर कोलकाता आदि अनेक संस्थाओं में ट्रस्टी पद पर रहते हुए जैन संघ के कई विशिष्ट कार्य किए। Lions Club आदि सामाजिक संस्थाओं में भी आपका विशिष्ट योगदान रहता है । आपकी संतुलित जीवन शैली आपके परिवार के लिए ही नहीं अपितु आपसे जुड़े हुए समस्त लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। स्वाध्याय आदि भी आपके जीवन का एक अभिन्न अंग है। आपकी जीवन सहगामिनी, स्वाध्याय रसिका, श्रीमती चित्रलेखाजी भंसाली ने जीवन की हर डगर पर आपका साथ निभाया। आपकी छोटी सी फुलवारी में धर्म संस्कारों के पुष्प खिलाने का श्रेय इन्हें ही जाता है। त्यागवैराग्य से ओत-प्रोत आपके जीवन की महक से सम्पूर्ण कलकत्ता समाज चिरपरिचित है। आपके पुत्र मनोज भंसाली एवं दोनों पुत्रियाँ आपकी तरह धर्म क्षेत्र में रुचिवन्त एवं समर्पित हैं। सज्जनमणि ग्रन्थमाला प्रकाशन भंसाली परिवार के लिए यही अभ्यर्थना करता है कि आप जिनशासन की समृद्धि में सहायक बनते हुए अपने आतम घर को भी जिनत्व के प्रकाश से समृद्ध करें।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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