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________________ 46... पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पश्चात संघ को ही नेता माना था। संघ में किसी विशिष्ट आचार्य आदि की व्यवस्था नहीं थी। 106 उपसंहार जैन वाङ्मय में वाचना का अत्यधिक महत्त्व है। वाचना दान एवं वाचनाचार्य पदस्थापना ये दो भिन्न प्रक्रियाएँ है । दीक्षित शिष्यों को सविधि पूर्वक ज्ञान देकर परिपक्व बनाना वाचना दान है और अध्यापन करवाने में निपुण शिष्य को वाचना दान की अनुज्ञा - अनुमति देना वाचनाचार्य स्थापना कहलाता है। वाचनाचार्य पदस्थापना यह शब्द चार पदों के योग से निष्पन्न है । वाचना शब्द के दो अर्थ हैं अध्ययन करना और अध्ययन करवाना। वाचना का सम्बन्ध वाचना दाता गुरु और वाचना ग्राही शिष्य दोनों से ही है। आचार्य अर्थात विशिष्ट योग्यता को धारण करने वाला पुरुष, पद अर्थात अधिकार सम्पन्नता, स्थापना अर्थात स्थापित करना। इस प्रकार विशिष्ट योग्यता धारक शिष्य को चतुर्विध संघ के समक्ष वाचना प्रदाता के रूप में उद्घोषित करना, नियुक्त करना, वाचनाचार्य पदस्थापना कहा जाता है । जिस विधि से यह प्रक्रिया पूर्ण की जाती है वह वाचनाचार्य पदस्थापना - विधि कहलाती है। इस पदस्थापना के माध्यम से शिष्य की योग्यता को अनावृत्त किया जाता है, क्योंकि सम्यक् श्रुत के अध्ययन-अध्यापन से ही आत्मा का विशुद्ध ज्ञाता स्वरूप प्रकट होता है। वस्तुतः जिस प्रकार खदान में पड़े हुए स्वर्ण का मूल स्वरूप ताप के द्वारा प्रकट किया जाता है उसी प्रकार आगम शास्त्रों के अध्यापन से शिष्य को यथार्थ आत्म स्वरूप का बोध कराया जाता है। अध्ययन-अध्यापन की इस प्रक्रिया के द्वारा शिष्य का क्षेम तो होता ही है साथ ही गुरु के कर्त्तव्य का निर्वहन भी होता है। आचार्य हरिभद्र ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि वाचना दाता गुरु वाचना शक्ति का गोपन करके अन्य आराधना करता है तो वह अनुचित है। कारण शक्ति का गोपन किये बिना जो यत्न करता है उसे ही यति कहते हैं। 107 - पंचवस्तुक में वाचना का महत्त्व बतलाते हुए यह भी कहा गया है कि प्रायः श्रुतधर्म से ही सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है । सम्यक्त्व मोक्ष का बीज है। वह जीवादि तत्त्वों के ज्ञान, आत्मा के शुभ परिणाम एवं सत्य श्रद्धान के रूप
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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