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भिक्षाचर्या की उपयोगिता एवं उसके रहस्य ...35 रखना आवश्यक है। यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि जब भी कई मुनि घर में एक साथ आहार ले रहे हों तो श्रावक उन्हें इस तरह खड़ा करें। जिससे दोनों आमने-सामने न हों अर्थात पीठ से पीठ हो, अन्यथा एक को अन्तराय आने पर दूसरों को भी अन्तराय हो जायेगा। यह एक अपवाद व्यवस्था है। चौके के बाहर से लाया गया आहार ग्राह्य है या नहीं?
आचार्य वट्टकेर के अनुसार चौके के बाहर से लाया गया आहार यदि पंक्तिबद्ध तीन अथवा सात घरों से लाया गया हो तो गाह्य है। यदि वह आहार बिना पंक्ति के यहाँ-वहाँ के घरों से लाया गया हो तो अग्राह्य है।19 एकल भोजी का आहार उत्कृष्ट कैसे?
तीर्थंकर पुरुषों ने एकल भोजी आहार को सर्वोत्कृष्ट बतलाया है। गुरु की अनुमति पूर्वक किया गया एकाकी आहार मंडली की अपेक्षा उत्तम होता है। एक शिष्य ने प्रश्न किया - हे भगवन्! सम्भोज प्रत्याख्यान से (मंडली भोजन का त्याग करने वाला) जीव क्या प्राप्त करता है? भगवान महावीर उत्तर देते हैंसम्भोज प्रत्याख्यान से वह परावलम्बन को छोड़ता है। परावलम्बन को छोड़ने वाले मनि के सारे प्रयत्न मोक्ष की सिद्धि के लिए होते हैं। वह भिक्षा में जो कुछ मिलता है, उसी में संतुष्ट रहता है। दूसरे मुनियों को प्राप्त हुई भिक्षा में आस्वाद नहीं लेता, उसकी ताक नहीं करता, स्पृहा नहीं करता, प्रार्थना नहीं करता और अभिलाषा भी नहीं करता। वह आत्म पुरुषार्थ को प्राप्त कर विहार करता है।20
भावार्थ यह है कि एकल भोजी साधु का आहार सीमित एवं स्वावलम्बन युक्त होता है क्योंकि स्वयं में आश्रितपना सुख और पराश्रितपना दुःख है। यद्यपि भोजन मंडली का सूत्रपात पराश्रितता को लेकर नहीं किया गया है। यह कुछ असमर्थ मुनियों के लिए नियत अवधि की एक आचार स्थापना है। ग्लान-स्वस्थ हो जाए, बाल-युवा हो जाए, अतिथि-सामान्य हो जाए तब वे ही एकल भोजी बन जाते हैं। अत: मंडली की अपेक्षा एकाकी आहार प्राधान्य गुण वाला है।
ऐसे ही अनेक प्रश्न जन मानस में स्फुरित होते रहते हैं किन्तु अनुकूल साधन नहीं मिलने के कारण वह स्फुरणाएँ एक प्रश्न बनकर रह जाती है। वर्णित अध्याय में ऐसे ही कई रहस्यों को उजागर किया गया है। यह विवरण युवा चित्त में दबी हुई शंकाओं एवं भ्रमित मान्यताओं का निवारण कर सम्यक मार्ग प्रदान करें यही लघु प्रयत्न किया है।