________________
I... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
विधि-नियमों की चर्चा प्रामाणिक ग्रन्थों के सन्दर्भ में की गई है।
षष्ठम अध्याय में भिक्षाचर्या का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अनुसंधान विस्तार पूर्वक किया गया है।
सप्तम अध्याय उपसंहार के रूप में प्रस्तुत है। इस कृति के परिशिष्ट में 42 दोष सम्बन्धी कथाएँ भी उद्धृत कर दी गई है जिससे आहार लेने एवं देने में पूर्ण सावधानी रखी जा सके। वर्तमान युग में मुनि भिक्षा के प्रति बढ़ती असावधानी, उपेक्षा एवं अज्ञानता में यह कृति सफल मार्गदर्शक बनकर आर्यजनों में बहुमान जगा सके, अंतस् में संयम प्राप्ति की नींव डाल सके तथा गृहस्थों एवं साधुओं को नियमों में दृढ़ बना सके, इसी मंगल प्रार्थना के साथ।