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________________ xiviii... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन संयमित भोजन पर अवलम्बित है। यह तथ्य मनोवैज्ञानिक सिद्धांत से भी सिद्ध हो चुका है कि भोजन से केवल शरीर का ही निर्माण नहीं होता अपितु हमारा मन, बुद्धि, विचार भी भोजन से प्रभावित होते हैं। व्यक्ति के आचार, विचार, व्यवहार आदि का सीधा सम्बन्ध भोजन से है। कहावत भी है जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन । जैसा पीवे पाणी, वैसी बोले वाणी ।। यह केवल कहावत नहीं है, अपितु हजारों वर्षों का अनुभूत सत्य है। नीतिकार चाणक्य ने कहा है- मनुष्य का आहार ही उसके विचारों एवं चरित्र का निर्माता है। जो व्यक्ति जैसा आहार करेगा उसका निर्माण भी वैसा ही होगा। कहा गया है दीपो भक्षयेद् ध्वान्तं, कज्जलं च प्रसूयते । यादृशं भुज्यते चान्नं, जायते तादृशी प्रजाः ।। दीपक अंधेरे को खाता है, इसलिए काजल पैदा करता है। एक ब्रिटिश डाक्टर का कहना है- 'यू आर व्हाट यू ईट' अर्थात आप वही होते हैं जो आप खाते हैं। छान्दोग्योपनिषद में भी आहार शुद्धि के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है आहार शुद्धौ सत्त्व शुद्धिः, सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः । स्मृतिर्लब्धे सर्व, ग्रन्थीनां विप्रमोक्षः ।। . (अ. 7, ख. 26/2) __ आहार शुद्धि के बल पर अन्तःकरण शुद्ध बनता है। अन्त:करण के शुद्ध होने पर बुद्धि निर्मल बनती है। निर्मल बुद्धि के द्वारा अज्ञान और भ्रम दूर हो जाते हैं और अन्तत: सभी बन्धनों से मुक्ति मिल जाती है। सार तत्त्व यह है कि शुद्ध भोजन ही साधना और सिद्धि में सहायक बनता है अत: शुद्ध, सात्त्विक और निर्दोष आहार हेतु अनासक्त योगी श्रमण के लिए भिक्षाचर्या करना, भिक्षाशुद्धि रखना सर्वथा युक्ति संगत है। __ मूलत: भिक्षा विधि क्या है? भिक्षा हेतु कौन से स्थान ग्राह्य और वर्ण्य हैं? भिक्षागमन कहाँ, किस प्रकार करना चाहिए? गृहस्थ के घर पर भिक्षार्थ प्रवेश करते समय साधु का वर्तन कैसा होना चाहिए? ग्राह्य-अग्राह्य भिक्षा का निर्णय किस प्रकार करें? भिक्षार्थी साधु आहार की गवेषणा करते समय किस प्रकार के अभिग्रह धारण करें? आहार सम्बन्धी बयालीस दोष कौन-कौनसे हैं? भिक्षाचर्या
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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