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208... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
नाम वैभिन्य- श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परम्पराओं के सन्दर्भ में एषणा दोष के नामों को लेकर विचार किया जाए तो
• श्वेताम्बर परम्परा में एषणा सम्बन्धी पांचवाँ दोष 'संहत' नाम का माना गया है वहाँ अनगार धर्मामृत में इस स्थान पर 'छोटित' नामक दोष है और मूलाचार में 'संव्यवहरण' नामक दोष का उल्लेख है। __• श्वेताम्बर आचार्यों ने एषणा सम्बन्धी दसवाँ दोष 'छर्दित' नाम का स्वीकार किया है, वहाँ अनगार धर्मामृत में 'विमिश्र' और मूलाचार में 'छोटित' नाम का निर्देश है। शेष नामों को लेकर दोनों परम्पराओं में मतैक्य है।
क्रम वैभिन्य- एषणा सम्बन्धी दस दोषों में क्रम की अपेक्षा निम्न अन्तर देखे जाते हैं
• श्वेताम्बर ग्रन्थों में 'मक्षित' दोष दूसरे स्थान पर है जबकि अनगार धर्मामृत में इसे तीसरा स्थान दिया गया है। • इसी तरह श्वेताम्बर परम्परा में तीसरे 'निक्षिप्त' नामक दोष को दिगम्बर में चौथा स्थान दिया गया है। . चौथे 'पिहित' नामक दोष को दिगम्बर आम्नाय में दूसरा स्थान प्राप्त है। • पाँचवें संहत नामक दोष के स्थान पर अनगार धर्मामृत में 'छोटित' दोष और मूलाचार में 'संव्यवहरण' नामक दोष का उल्लेख है। • श्वेताम्बर मान्यतानुसार छठवें 'दायक' नामक दोष को दिगम्बर मान्यता में आठवाँ स्थान दिया गया है। • सातवें 'उन्मिश्र' दोष को किंचित नामान्तर के साथ दसवाँ स्थान दिया गया है। अनगार धर्मामृत में उन्मिश्र के स्थान पर 'विमिश्र' नाम है। आठवें 'अपरिणत' नामक दोष को छठे स्थान पर रखा गया है।
यह क्रम भेद अनगार धर्मामृत की अपेक्षा से कहा गया है। आचार्य वट्टकेर ने इन दोषों का क्रम लगभग श्वेताम्बर के समान ही रखा है। ___ स्वरूप वैभिन्य - दिगम्बर परम्परा के अनगार धर्मामृत में पांचवाँ छोटित नाम का एषणा दोष पाँच प्रकार का बतलाया गया है
1. संयमी के द्वारा बहुत सा अन्न नीचे गिराते हए थोड़ा खाना।
2. दाता के द्वारा हाथ से दही आदि गिर रहा हो उस अवस्था में ग्रहण करना।
3. मुनि के हाथ से दही आदि नीचे गिरता हो तो भी भोजन करना। 4. दोनों हथेलियों को अलग-अलग करके भोजन करना।