SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 170... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन 227. जोग्गमजोग्गं च दुवे, वि मीसिउं देई तमुम्मीसं। पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 89 228. पुढवी आऊ य तहा, हरिदा बीया तसा य सज्जीवा। पंचेहिं तेहिं मिस्सं, आहारं होदि उम्मिस्सं ॥ मूलाचार, 472 229. अनगार धर्मामृत, 5/28, 5/36 230. पिण्डनियुक्ति, 608 231. वही, गा. 607 की टीका, पृ. 165 232. अपरिणतम् अप्रासुकी भूतम्। (क) पिण्डविशुद्धि प्रकरण, 90 (ख) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 447 233. दशवैकालिकसूत्र, 3/7 234. मूलाचार, 473 235. पिण्डनियुक्ति, 610 236. पिण्डनियुक्ति, 611-612 237. पिण्डनियुक्ति की टीका, पृ. 166 238. (क) मूलाचार, 474 (ख) अनगार धर्मामृत, 5/35 239. चारित्रसार, 72/1 240. मूलाचार, 475 241. अनगार धर्मामृत, 5/31 242. (क) पिण्डनियुक्ति, 635 (ख) पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 94 (ग) पंचाशक प्रकरण, 13/48-49 (घ) प्रवचनसारोद्धार, 734-736 की टीका 243. (क) पिण्डनियुक्ति, 637 की टीका, पृ. 172 (ख) बृहत्कल्पभाष्य टीका, पृ. 239 244. पंचवस्तुक, 359
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy