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116... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन को दिया गया भोजन चोल्लक कहलाता है। भोजन से सम्बन्धित चोल्लक अनिसृष्ट दो प्रकार का है-1. स्वामी विषयक और 2. हस्ती विषयक।132
स्वामी विषयक- स्वामी विषयक चोल्लक दोष दो प्रकार का होता हैछिन्न और अछिन्न। कोई कौटुम्बिक अपने खेत में काम करने वाले प्रत्येक हालिकों के लिए अलग-अलग भोजन बनवाकर भेजें तो वह छिन्न कहलाता है।133 सभी हालिकों के लिए एक साथ एक ही बर्तन में भोजन भेजा जाए तो वह अच्छिन्न कहलाता है।134 यदि कौटुम्बिक हालिकों के लिए भेजे गए सामूहिक भोजन में साधु के लिए भी भेजा गया हो तो वह निसृष्ट (अनुज्ञात) कहलाता है किन्तु कौटुम्बिक की अनुमति के बिना यह अनिसृष्ट कहलाता है। छिन्न चुल्लक में मूल स्वामी की अनुज्ञा अपेक्षित नहीं है। प्रत्येक हालिक यदि अपना व्यक्तिगत आहार देना चाहे तो वह साधु के लिए कल्प्य है। अच्छिन्न में यदि सभी स्वामी की अनुज्ञा के बिना कुछ हालिकों के द्वारा आहार दिया जाए तो चोल्लक अनिसृष्ट दोष लगता है। ___(iii) हस्ती-जड्ड अनिसृष्ट- हाथी के लिए निर्मित भोजन में से यदि महावत के द्वारा थोड़ा साधु को दे दिया जाये तो वह जड्ड अनिसृष्ट दोष है।
परिणाम- साधारण एवं चोल्लक अनिसृष्ट सम्बन्धी आहार लेने पर प्रद्वेष, अंतराय, पारस्परिक कलह आदि दोषों की संभावना रहती है। हस्ती विषयक आहार राजपिण्ड होने से राजा की आज्ञा आवश्यक है, अन्यथा राजा महावत आदि को नौकरी से मुक्त कर सकता है, उसकी आजीविका का विच्छेद हो जाए तो साधु को अंतराय का दोष लगता है। राजाज्ञा के बिना आहार लेने पर अदत्तादान महाव्रत भी खंडित होता है। हाथी के लिए बनाया भोजन न लेने का कारण यह है कि महावत को प्रतिदिन दान देते देखकर हाथी रुष्ट होकर यह सोच सकता है कि साधु प्रतिदिन मेरे आहार को ग्रहण करता है। वह उस साधु को उपाश्रय में देखकर उससे क्रुद्ध हो सकता है तथा रोष में आकर साधु का प्राण घात भी कर सकता है अत: हाथी के समक्ष महावत के द्वारा दिया जाने वाला आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए।135 यह खोज का विषय है कि तिर्यंच में गाय, भैंस, कुत्ता आदि का उल्लेख न करके केवल हाथी का ही निर्देश क्यों दिया गया? समणी कुसुमप्रज्ञा जी ने इससे संभावित निम्न कारण बतलाए हैं
• हाथी को जो आहार दिया जाता है, उसमें मनुष्य द्वारा भोग्य पदार्थ अधिक दिए जाते होंगे।