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आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...105
पिण्डनियुक्ति में प्राभृतिका दोष आहार से सम्बन्धित है लेकिन बृहत्कल्पभाष्य में यह दोष वसति (स्थान) से सम्बन्धित भी कहा गया है। 7. प्रादुष्करण दोष
अंधकार युक्त स्थान को प्रकाशित करके अथवा अंधकार से प्रकाश में लाकर आहार देना अथवा देने योग्य वस्तु के लिए स्थान विशेष को प्रकाशित करना, प्रादुष्करण दोष है।78 यह दोष दो प्रकार से संभव होता है- 1. प्रकटकरण
और 2. प्रकाशकरण। ___(i) प्रकटकरण- गृह द्वार नीचा हो अथवा गृहांगन में अंधेरा हो तो प्रकाश वाले स्थान में आहार आदि लाकर देना अथवा खिड़की आदि खोलकर प्रकाश युक्त स्थान में आहार देना प्रकटकरण दोष है। ___(ii) प्रकाशकरण- गृहांगन मे अंधेरा हो तो दीवार में छिद्र कर अथवा मणि, दीपक या अग्नि द्वारा उस स्थान को प्रकाशित कर आहार आदि का दान करना प्रकाशकरण दोष है।79
यदि भिक्षा देने के उद्देश्य से मुनि के आने से पूर्व प्रकाश किया जाए तो दोष का भागी गृहस्थ होता है तथा साधु के आने के बाद प्रकाश किया जाए और उस स्थिति में मुनि आहार ग्रहण करते हैं तो गृहस्थ-साधु दोनों दोषी कहलाते हैं। यदि गृहस्थ बाहर प्रकाश में लाकर यह कहे कि घर के अंदर बहुत मक्खियाँ हैं और गर्मी भी अधिक है, बाहर प्रकाश भी है और मक्खियाँ भी नहीं हैं अत: हम अपने लिए भोजन बाहर लाए हैं अथवा बाहर पकाया है। इस प्रकार आत्मार्थीकृत कहने पर वह भोजन निर्दोष होने से साध के लिए ग्राह्य है। ज्योति या दीपक का प्रकाश गृहस्थ ने अपने लिए किया हो तो भी वह आहार साधु के लिए कल्पनीय नहीं होता। यदि किसी कारण से प्रादुष्करण दोष युक्त आहार ग्रहण कर लिया जाए तो साधु पात्र को धोए बिना भी उसमें शुद्ध आहार ग्रहण कर सकता है। आचार्य वसुनंदी के अनुसार ईर्यापथ की शुद्धि न होने के कारण प्रादुष्करण दोष युक्त आहार वर्जित है।80
परिणाम- प्रादुष्करण सम्बन्धी आहार लेने पर खिड़की आदि अयतना पूर्वक खोली जाये, दीपक आदि द्वारा प्रकाश किया जाये तो षटकायिक जीवों की विराधना होती है, सूक्ष्म त्रस जीवों को पीड़ा पहुँचती है इससे अहिंसा महाव्रत दूषित होता है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि जिस स्थान को चक्षु