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78... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन
• किसी दाता के द्वारा अचानक भिक्षा पात्र को दुर्लभ द्रव्यों से भर दिया गया हो।
• भिक्षा ग्रहण के बाद उपवास की इच्छा हो जाने पर।
इन कारणों में अतिरिक्त आहार की पूर्ण संभावना रहती है, किन्तु वह आहार परिष्ठापनीय नहीं होता। ऐसी स्थिति में अतिरिक्त आहार अन्य समनोज्ञ साम्भोगिक अपरिहारिक साधुओं को निमंत्रित कर उन्हें देने का विधान है। यदि वहाँ समनोज्ञ आदि समान सामाचारी वाले साधुओं का अभाव हों तो परिष्ठापन करना पड़ सकता है।
मुनि अतिरिक्त आहार के होने पर समीपवर्ती समनोज्ञ आदि मुनियों को आमंत्रित किये बिना उसका परिष्ठान करता है तो वह माया स्थान का संस्पर्श करता है और दोषों का भागी होता है। कदाचित निकटवर्ती स्थान में समनोज्ञ मुनियों का संयोग न हो तो जिन्हें बार-बार क्षुधा का अहसास होता हो, ऐसे बाल, वृद्ध या नवदीक्षित उस आहार का परिभोग कर सकते हैं। रुग्ण मनि उसके अनुकूल द्रव्यों का उपयोग दुबारा कर सकता है, अतिथि साधु विहार की थकान दूर होने पर पुनः आहार कर सकता है। संभवतः किसी साधु द्वारा अतिरिक्त आहार का सेवन न भी किया जाए तब भी जो साधु आत्म शुद्धि की भावना से अतिरिक्त आहार लाता है, वह विपुल निर्जरा का भागी होता है अत: छद्मस्थ मुनियों को तो दूसरे साधुओं के अनुग्रह के लिए भी अतिरिक्त आहार लाना चाहिए। अतिशय ज्ञानी के लिए यह विधि वैकल्पिक है जैसे कोई खाने वाला हो तो अतिरिक्त लाये, अन्यथा नहीं। जिनकल्पी मुनि करपात्री और पात्रधारी दोनों तरह के होते हैं। वे स्वयं के परिमाण जितना आहार ही ग्रहण करते हैं।49 दिगम्बर मुनि किन स्थितियों में आहार नहीं ले सकते?
दिगम्बराचार्य वट्टकेर ने भिक्षु के आहार सम्बन्धी बत्तीस अन्तराय बतलाये हैं। यहाँ अन्तराय से तात्पर्य है कि मुनि उन स्थितियों में आहार नहीं कर सकते। वे अन्तराय निम्न हैं
1. काक - भिक्षार्थ गमन करते हुए या स्थिर खड़े हुए मुनि के ऊपर काक, बक आदि पक्षी बीट कर दें तो उस दिन आहार नहीं ले सकते हैं।
2. अमेध्य - भिक्षार्थ गमन करते हुए मुनि के पाँव विष्टा आदि से लिप्त हो जाए तो उस दिन आहार नहीं ले सकते हैं।