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________________ अध्याय-3 वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम आज समय बदल रहा है। जीवन जीने का तरीका, जीवन मूल्य एवं जीवन की महत्त्वाकांक्षाएँ बदल रही है। लोगों का खान-पान, रहन-सहन, आचारविचार आदि सब कुछ बदल गया है। लोगों का रूझान घर में कम और बाहर अधिक रहता है। हमारा देश 'अतिथि देवो भव' की संस्कृति के लिए जग विख्यात था। देहलीज या द्वार पर आने वाला अतिथि या याचक कभी खाली हाथ नहीं जाता था। स्वयं का भोजन बनाने से पूर्व अतिथि एवं याचक का भाग निकाला जाता था। परन्तु आज उसी देश की परिस्थिति एवं मानसिकता दोनों बदल गई है। एकल परिवार, बढ़ती महंगाई एवं गरमागरम भोजन खाने की आदत ने अधिकतर घरों में आहार प्राप्ति की संभावना नहींवत कर दी है। गगनचुम्बी इमारतों में १०३-१३वें तल्ले पर रहना सामान्य बात है क्योंकि Lift की सुविधा है लेकिन साधु-साध्वियों के लिए ऐसी स्थिति में भ्रमण करना और भी कठिन हो गया है। जो लोग गुरु समागम को जरूरी नहीं समझते तथा गरुजनों के सत्संग आदि में नहीं आते, ऐसे घरों में आहार कैसे बहराया जाए, कौनसा भोजन दिया जाए आदि के विषय में ज्ञान न होने से भी आहार प्राप्ति दुर्लभ होती जा रही है। इन परिस्थितियों में यह प्रश्न उठना सहज है कि वर्तमान युग में भिक्षाचर्या सम्बन्धी नियमों का औचित्य है भी या नहीं? उनमें किसी परिवर्तन की आवश्यकता है या फिर हमारे जागरुक होने की? अत: सामान्य जनता को भिक्षाचर्या के नियमों से अवगत करवाना निःसन्देह आवश्यक हो गया है। भिक्षाचर्या योग्य मुनि के लक्षण भिक्षा एषणा का एक प्रकार है। सम्यक निरीक्षण एवं परीक्षण के द्वारा ही
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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