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354...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन परपक्ष आपातवाली स्थंडिल भूमि में लगने वाले दोष
जिस स्थंडिल भूमि में परपक्ष के पुरुष आते हों यदि उस भूमि पर जाना पड़े तो मुनि को प्रचुर जल लेकर जाना चाहिए, अन्यथा पानी कम हो, अस्वच्छ हो या बिल्कुल न हो तो शासन की निन्दा होती है। जैसे 'ये साधु गन्दे हैं, ये कितने अपवित्र हैं, इन अपवित्र मुनियों को आहार-पानी देने से क्या लाभ होगा?' ऐसा सोचकर स्वयं के घर में भिक्षा के लिए भी निषेध कर सकते हैं। धर्माभिमुख बना हुआ नवागन्तुक व्यक्ति धर्म के परिणामों से च्युत हो सकता है, मुनि धर्म के प्रति अरुचि हो सकती है। इस तरह पुरुष आपात वाली भूमि में जाने से कई दोष उत्पन्न होते हैं।
स्त्री एवं नपुंसक जीवों के गमनागमन वाली स्थंडिल भूमि में जाने से मुनि, गृहस्थ या दोनों के विषय में सन्देह पैदा हो सकता है। जैसे यह साधु किसी स्त्री को भ्रमित करना चाहता है अथवा जहाँ हम और हमारे स्वजनवर्ग (स्त्रीवर्ग) मलविसर्जन के लिए जाते हैं वहाँ किसी स्त्री को चाहते होंगे अथवा किसी स्त्री को आने का संकेत किया होगा। इस कारण ये साधु स्त्री की आपात वाली भूमि में जाते हैं। स्त्री एवं नपुंसक के विषय में सन्देह होता है कि ये दोनों दुराचरण करना चाहते हैं। इसके सिवाय परस्पर में एक-दूसरे को देखकर वेदोदय होने से मैथुन सेवन की सम्भावना भी रहती है। यदि साधु को स्त्री या नपुंसक के साथ मैथुन सेवन करते हुए किसी गृहस्थ द्वारा देख लिया जाए तो वह मनुष्य राजादि से कहकर उन्हें दण्डित करवा सकता है, इससे शासन की भारी हीलना होती है तथा साधु स्वयं भी अपमानित होने से दीक्षा त्याग या आत्महत्या आदि कर सकता है।11 तिर्यंच जीवों के आपातवाली स्थंडिल भूमि में लगने वाले दोष
हिंसक पशुओं के आवागमन वाली स्थंडिल भूमि में जाने से पशु सींग आदि से मुनि को हानि पहुँचा सकते हैं, सींगादि द्वारा प्रहार होने से मुनि को मूर्छा आ सकती है या मृत्यु भी हो सकती है। घेटा आदि निन्दनीय तिर्यञ्च वाली भूमि में जाने से लोगों के मन में मुनि के प्रति दुराचार करने का सन्देह उत्पन्न होता है। कदाचित आवेग प्रबल हो जाये तो मैथुन सेवन का प्रसंग भी बन सकता है। उपर्युक्त दोष तिर्यञ्च आपात स्थंडिल वाली भूमि के सम्बन्ध में कहे गये हैं। इसी प्रकार के दोष मनुष्य संलोक वाली स्थंडिल भूमि से सम्बन्धित भी