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352... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
• पुरुष की तरह स्त्री की आपात वाली भूमि और नपुंसक की आपातवाली भूमि छह-छह प्रकार की होती है।
यहाँ ध्यातव्य है कि जिस भूमि में जिस तरह के लोगों का विशेष आगमन होता है वह भूमि उपचारत: उस-उस नाम से व्यवहृत होती है, जैसे- नपुंसक जीवों का जहाँ विशेष आवागमन हो वह नपुंसक आपातवाली स्थंडिल भूमि के नाम से कही जाती है।
2. तिर्यञ्च के आपात ( गमनागमन) वाली भूमि
तिर्यञ्च जीव दो प्रकार के होते हैं - 1. दृप्त - हिंसक प्रवृत्ति वाले 2. अदृप्तशान्त स्वभाव वाले
पूर्वोक्त दोनों प्रकार के तिर्यञ्च जीव जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट तीन-तीन प्रकार के हैं। तिर्यञ्च के जघन्य - मध्यम आदि भेद मूल्य की अपेक्षा से हैं। 1. अल्प मूल्य वाले भेड़, बकरी आदि जघन्य पशु हैं।
2. कुछ अधिक मूल्य वाले भैंस, गाय आदि मध्यम पशु हैं। 3. विशेष मूल्य वाले हाथी आदि उत्कृष्ट श्रेणी के पशु हैं।
इस प्रकार पुरुष संज्ञा वाले तिर्यञ्च पशु के आपात (आवागमन) वाली स्थंडिल भूमि छह प्रकार की होती है। इसी तरह स्त्री संज्ञक तिर्यञ्च पशु और नपुंसक संज्ञक तिर्यञ्च पशु के आपातवाली स्थंडिल भूमि भी छह-छह विभाग वाली होती है। पूर्वोक्त छह-छह प्रकार की स्थंडिल भूमियाँ निन्दनीय एवं अनिन्दनीय के भेद से दो-दो प्रकार की बतायी गयी हैं। अस्तु तिर्यञ्च जीवों के आवागमन वाली भूमियाँ 12+12+12 = 36 प्रकार की होती हैं।
संलोक युक्त स्थंडिल भूमि
जहाँ लोग आते-जाते दिखाई दें वह संलोक स्थंडिल भूमि कहलाती है । यह भूमि मनुष्य सम्बन्धी ही होती है । मनुष्य तीन प्रकार के हैं 1. पुरुष, 2. स्त्री, 3. नपुंसक।
इन तीनों प्रकार के मनुष्य तीन-तीन भेद वाले हैं - 1. सामान्य जन 2. सेठ साहूकार तथा 3. राजपुरुष । इनमें से प्रत्येक मनुष्य दो-दो भेद वाले हैं1. शौचवादी और 2. अशौचवादी ।
इस तरह पुरुष संलोक ( पुरुषों के द्वारा दिखायी दी जाने) वाली, स्त्री संलोक वाली एवं नपुंसक संलोक वाली स्थंडिल भूमि 6 + 6 + 6 = 18 प्रकार की होती है।