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विहारचर्या सम्बन्धी विधि-नियम...319 विचार किया जाए तो वर्तमान में बढ़ते प्रदूषण (Pollution) की समस्या तथा बढ़ते रोगों पर नियंत्रण पाने के लिए व्यक्ति को मशीनों के उपयोग की एक सीमा निश्चित कर जमीन पर चलना ही होगा। जमीन में कई ऐसे प्राकृतिक तत्त्व हैं जो शरीर को रोग मुक्त बनाने में सहायक हो सकते हैं। बढ़ते क्षेत्रवाद, आपसी मन-मुटाव आदि समस्याओं के विषय में विहार मतभेदों को दूर करने में सहायक हो सकता है। जहाँ साधु-साध्वियों का विहार नहीं होता उन क्षेत्रों की जनता आध्यात्मिक क्षेत्रों में पिछड़ी रह जाती है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की स्पर्शना करने से उन क्षेत्रों की मानसिकता के अनुसार धर्म की प्ररूपणा की जा सकती है। इससे घटते सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्यों की समस्या का समाधान हो सकता है। विश्व की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर तो यही लगता है कि घटते पशुधन, बढ़ते प्रदूषण एवं महंगाई के कारण अंत में पुन: पैदल चलने का ही समय आने वाला है। अत: प्राकृतिक अति दोहन को रोकने के लिए भी विहार आवश्यक है। विहारचर्या की ऐतिहासिक अवधारणा ____ विहार से जैन मुनियों की विशेष पहचान होती है। इस चर्या के द्वारा साधुसाध्वी समग्र विश्व को अहिंसा, अनेकान्त एवं अपरिग्रह जैसे दर्शन के द्वारा श्रेष्ठ जीवन जीने का संदेश देते हैं तथा स्वयं को सम या विषम स्थितियों में तटस्थ बनाये रखने के संस्कार दृढ़ करते हैं। यह आचार-विधि पूर्णत: प्रयोग आधारित है। __विहार कब, किस विधि पूर्वक करें एवं उसके प्रयोजन क्या हैं? इन प्रश्नों के सम्बन्ध में ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करने पर मूलागमों में 'विहार शब्द का प्रयोग विविध प्रसंगों में उपलब्ध होता है। आचारांगसूत्र में भगवान महावीर के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने को 'विहार' कहा गया है।18 यहाँ विहार शब्द ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्नत्रयी साधना में सदैव प्रवृत्त रहने के अर्थ में प्रयुक्त है। इसे भाव विहार कह सकते हैं।19 पदयात्रा करना द्रव्य विहार कहलाता है और आत्म स्वभाव में विचरण करना भाव विहार कहलाता है। आचारांगसूत्र में साधु-साध्वी को किन क्षेत्रों में विहार नहीं करना चाहिए इसका भी उल्लेख है।20
ज्ञाताधर्मकथा में विहार शब्द का प्रयोग 'प्रासुक विहार' अर्थात ठहरने