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वस्त्र ग्रहण सम्बन्धी विधि - नियम... 225
1. बौद्ध संघ में भिक्षु एवं भिक्षुणी दोनों को वस्त्र ग्रहण के समय अत्यन्त सावधानी रखने का निर्देश है। शारीरिक भिन्नता के कारण भिक्षुणियों को विशेष सजगता रखने का उल्लेख है।
2. रजस्वला काल में वस्त्र पर रक्त के धब्बे न पड़ जाएं, इस हेतु अत्यन्त सजगता रखने को कहा गया है।
3. बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणी निम्न छह प्रकार के वस्त्र धारण कर सकते हैं1. क्षौम निर्मित वस्त्र 2. कपास निर्मित वस्त्र 3. कौशेय निर्मित वस्त्र 4. ऊन निर्मित वस्त्र 5. सन निर्मित वस्त्र 6. अलसी आदि की छाल से निर्मित वस्त्र ।
4. सामान्यतया बौद्ध भिक्षु भिक्षुणियों को तीन वस्त्र रखने का नियम है - 1. संघाटी 2. उत्तरासंग और 3. अन्तरवासक । संघाटी दो परतों की, उत्तरासंग एक परत का एवं अन्तरवासक एक परत का होता है। यदि वस्त्र पुराने हो गए हों तो संघाटी चार स्तर की एवं शेष दोनों दो-दो स्तर के होते हैं। कालान्तर में अन्य वस्त्र रखने की भी अनुमति दी गई है। ऋतुकाल के समय भिक्षुणी के लिए आवसत्थ चीवर एवं अणिचोल (रक्त शोधक) वस्त्र धारण करने का नियम है।
दैनिक जीवन के लिए उपयोगी कुछ अन्य वस्त्रों के रखने का भी विधान है, जैसे पच्चत्थरण (बिछाने की चद्दर), कण्डुपरिच्छादन (खुजली, फोड़ा आदि के समय बांधने का वस्त्र), मुखपुंछन, परिक्खारचोलक ( थैले आदि की तरह का वस्त्र ) आदि ।
5. अत्यन्त सतर्कतापूर्वक वस्त्र ग्रहण करना, वस्त्रदाता के शुभाशुभ विचारों का परीक्षण करना आदि कतिपय नियम जैन परम्परा से मिलते-जुलते हैं। 6. बौद्ध संघ में भिक्षु के लिए उपयोगी वस्त्र को चीवर कहा गया है, जो समारोहपूर्वक आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा के मध्य प्रदान किया जाता है। इस प्रकार एक निश्चित काल में चीवर बांटने का विधान है। 7. इस संघ में वस्त्र रंगने का भी नियम बनाया गया है। महावग्ग के अनुसार बुद्ध ने छह प्रकार के वस्त्र रंगने का आदेश दिया है, जबकि जैन परम्परा में सदाकाल श्वेत वस्त्र धारण करने पर बल दिया गया है। बौद्ध परम्परा में रंग पकाने, रंग पकाने हेतु पात्र रखने एवं उन्हें बांस आदि पर सुखाने