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210...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
अक्खोडा और पक्खोडा 9-9 होते हैं। ये क्रमश: एक दूसरे के अन्तराल में होते हैं, जैसे पहले तीन अक्खोडा, फिर तीन पक्खोडा, फिर अक्खोडा-पक्खोडा
इस तरह दोनों क्रियाएँ तीन-तीन बार ऐसे कुल 9-9 बार की जाती है। 16. नौ अक्खोडा और नौ पक्खोडा की क्रिया दायें हाथ पर या बायें हाथ पर या
दोनों हाथ पर किस तरह की जानी चाहिये? इस सम्बन्ध में दो मत हैं- एक परम्परा के अनुसार यह क्रिया दायें हाथ के द्वारा मुखवस्त्रिका का वधूटक बनाकर बायें हाथ पर की जानी चाहिये।
दूसरी परम्परा के मतानुसार क्रमश: दो अक्खोडा एवं एक पक्खोडा की क्रिया बायें हाथ पर तथा दो पक्खोडा एवं एक अक्खोडा की क्रिया दायें हाथ पर की जानी चाहिए अर्थात सुदेव, सुगुरु, सुधर्म आदरूँ, कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरू, ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरूं-ये 9 बोल बायें हाथ पर बोले जाने चाहिए तथा ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना, चारित्र विराधना परिहरूं, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति आदरूं, मनोदंड, वचनदंड, कायदंड परिहरूं-ये 9 बोल दायें हाथ पर बोले जाने चाहिये।
यह ध्यान रहे कि बायें हाथ पर बोल बोलते समय दायें हाथ की अंगुलियों से मुखवस्त्रिका का वधूटक बनाएँ और बायें हाथ की प्रमार्जना करें। इस तरह दायें हाथ पर बोलों का चिन्तन करते समय बायें हाथ की अंगुलियों से मुखवस्त्रिका का वधूटक बनायें और दायें हाथ की प्रमार्जना करें। यह ध्यातव्य है कि एक अक्खोडा या एक पक्खोडा की क्रिया में तीन बोल पूर्वक क्रमश: तीन प्रमार्जना की जाती है। वर्तमान में दोनों परम्पराएँ प्रचलित हैं। स्व
स्व सामाचारी के अनुसार दोनों परम्पराएँ उचित भी हैं। 17. उत्तराध्ययनसूत्र, 26/25-26 18. दिट्ठिपडिलेहणेगा, नव अक्खोडा नवे व पक्खोडा। पुरिमिल्ला छच्च भवे, मुहपुत्ती होइ पणवीसा ॥
(क) प्रवचनसारोद्धार, गा. 96 दिट्ठिपडिलेह एगा, छ उड्ढ पप्फोडा तिगतिगंतरिआ। अक्खोड पमज्जणया, नव नव मुहपत्ति पणवीसा ।।
(ख) गुरुवंदनभाष्य, गा. 20 19. बाहूसिरमुह हियये, पाएसु य हुंति तिन्निपत्तेयं । पिट्ठीइ हुंति चउरो, एसा पुण देह पणवीसा ।।
(क) प्रवचनसारोद्धार, गा. 96