________________
संथारा उत्तरपट्ट
प्रतिलेखना एवं प्रमार्जना सम्बन्धी विधि-नियम...205 12 25 दो बार
उकडूं 13 25 दो बार
उकडूं आसन 25 दो बार
उकडूं डंडा 15 10 दो बार
खड़े-खड़े दण्डासन 16 10 दो बार
खड़े-खड़े • इसके अतिरिक्त रात्रि में मच्छरदानी, चटाई आदि जिनका भी उपयोग किया जाए, उन सभी की 25-25 बोल से दो बार प्रतिलेखना करनी चाहिए।
प्राचीन परम्परानुसार पात्रोपकरण प्रतिलेखना यन्त्र उपकरण क्रम बोल संख्या आसन गोच्छग
1 25 प्रथम एवं चतुर्थ सुखासन (पात्र के ऊपर ढंकने
प्रहर में दो बार का ऊनी वस्त्र) पडला 2 25 दो बार
सुखासन पात्रकेसरिका (पूंजणी) 3
सुखासन पात्रबंध (झोली) 4 25 दो बार सुखासन 5 25 दो बार
सुखासन रजस्त्राण
6 25 दो बार सुखासन (पात्र लपेटने का वस्त्र) पात्रस्थान (नीचे के गुच्छे)7 25 दो बार सुखासन
• साधुविधिप्रकाश में पात्रकेसरिका, पात्र, गोच्छग, पटल, पात्रबन्ध, रजस्त्राण, पात्रस्थापन- इस क्रम से पात्र प्रतिलेखना करने का निर्देश है।
प्रचलित परम्परानुसार पात्र प्रतिलेखना यन्त्र उपकरण
क्रम बोल संख्या 1 25 दो बार
सुखासन पटल
2 25 दो बार सुखासन पात्रकेसरिका 3 10 दो बार सुखासन पात्रबंध
4 25 दो बार सुखासन पात्र 5 25 दो बार
सुखासन पतरी ___6 25 दो बार
सुखासन
पात्र
आसन
गोच्छग