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156...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
(ग) भगवतीसूत्र, 8/250
(घ) बृहत्कल्पसूत्र, 3/14,15 59. जैन धर्म का यापनीय सम्प्रदाय, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 476-479 से उद्धृत 60. रजसेदाणमगहणं, मद्दव सुकुमालदा लहत्तं च । जत्थेदे पंचगुणा तं, पडिलिहणं पसंसंति ॥
मूलाचार, 10/912 की टीका 61. वही, 10/913 62. वही, 10/914 63. नीतिसार, 43, पृ. 411 64. मूलाचार, 10/916 65. भगवती आराधना, 96 66. वही, 97 67. मूलाचार, 1/14 की टीका 68. पोत्थइकमंडलाइं गहण विसग्गेसु। नियमसार, गा. 64 69. आदाने कुंडिकादि ग्रहणे। उद्धृत-मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. 413 70. शश्वद विशोधयेत् साधु, पक्षे पक्षे कमण्डलुम् । तदशोधयतो देयम्, सोपस्थानोपवासनम् ॥
प्रायश्चित्तसमुच्चय, 88 71. तत्त्वार्थसूत्र, 7/12 72. ओघनियुक्ति, 745 73. पंचवस्तुक, 839 74. वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं उग्गहं च कडासणं । एतेसु चेव जाणेज्जा...
आचारांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 1/2/5 सू. 89, पृ. 62 75. (क) जे भिक्खु तिहिं वत्थेहिं परिवसिते पायचउत्थेहि, तस्स-णं णो एवं
भवति-चउत्थं-वत्थं जाइस्सामि। आचारांगसूत्र, 1/8/4/213 जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायतइएहि, तस्स णं णो एवं भवति
तइयं वत्थं जाइस्सामि। वही, 1/8/5/216 (ग) जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिवुसिते पायविइएण, तस्स नो एवं भवइ
बिइयं वत्थं जाइस्सामि। वही, 1/8/6/220 (घ) अदुवा अचेले। वही, 1/8/6/93 76. जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं वत्थं धारेज्जा,
णो बितियं। वही, 2/5/1/553