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उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...127 20. बहिर्निवसिनी- कमर से लेकर पैर की एड़ियों तक ढंकने वाला लंबा वस्त्र। यह कमर पर डोरे से बंधा हुआ होता है। वर्तमान में इसे साड़ा कहते हैं।
21. कंचुकी- दोनों तरफ कसों से बांधकर शरीर पर पहना जाने वाला बिना सिला हुआ वस्त्र (चोली)।
22. उपकक्षिका- कंचुकी के ऊपर बांधा जाने वाला वस्त्र। 23. वैकक्षिका- कंचुकी और उपकक्षिका को ढंकने वाला वस्त्र विशेष।
24. संघाटी- भिक्षाचर्या, स्थंडिल, प्रवचन, महोत्सव आदि के समय ओढ़े जाने वाला वस्त्र विशेष। वर्तमान में इसे चादर कहते हैं। औधिक उपधि के प्रकार
जैन ग्रन्थों में जिनकल्पी, स्थविरकल्पी एवं साध्वी के लिए गणना परिमाण के अनुसार जो उपधि बतायी गई है वह जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट की अपेक्षा तीन प्रकार की होती हैं। ये प्रकार प्रायश्चित्त आदि के लिए उपयोगी बनते हैं, जैसे जघन्य उपधि गुम हो जाये तो अमुक प्रायश्चित्त, मध्यम उपधि गुम हो जाये तो अमुक प्रायश्चित्त और उत्कृष्ट उपधि गुम हो जाये तो अमुक प्रायश्चित्त आता है।11
• पंचवस्तुक में जिनकल्पी और स्थविरकल्पी मुनि की उत्कृष्ट उपधि चार प्रकार की, मध्यम छह प्रकार की और जघन्य चार प्रकार की कही गई है। उत्कृष्ट उपधि में तीन प्रकार के वस्त्र और पात्र ये चार उपकरण आते हैं। जघन्य उपधि में दो गुच्छा (पात्र के ऊपर बांधने का एवं पात्र के नीचे रखने का ऊनी वस्त्र खण्ड), मुखवस्त्रिका और पूंजणी ये चार उपकरण आते हैं। __ • मध्यम उपधि में पडला, रजस्त्राण, पात्रस्थापन (झोली) और रजोहरण ये चार उपकरण जिनकल्पियों के हैं तथा इन चारों के साथ चोलपट्टा एवं मात्रक ऐसे छह उपकरण स्थविर कल्पियों के समझने चाहिए।12
• पंचवस्तुक टीका में साध्वियों की उत्कृष्ट उपधि आठ प्रकार की, मध्यम तेरह प्रकार की और जघन्य चार प्रकार की बतलायी गयी है। उत्कृष्ट उपधि में -
दो सूती और एक ऊनी ऐसे तीन वस्त्र, अंतर्निवसनी, बहिर्निवसनी, संघाटी, स्कंधकरणी और पात्र- ये आठ उपकरण माने गये हैं। मध्यम उपधि में- झोली, पडला, रजोहरण, मात्रक, कमढ़क, रजस्त्राण, अवग्रहानन्तक, अवग्रहपट्ट, अधोरुक, चलनिका, उपकक्षिका, कंचुकी और वैकक्षिका ये तेरह उपकरण माने