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श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष...67
147. वही, 29/54 148. वही, 24/23 149. वही, 29/55 150. वही, 24/24,25 151. वही, 29/56 152. स्थानांगसूत्र, 3/1/21 153. उत्तराध्ययनसूत्र, 24/20,22,24 154. तत्त्वार्थसूत्र, 9/5 155. प्रवचनसारोद्धार, गा. 595 156. बृहत्कल्पभाष्य, 1648-50,52,53 157. पंचवस्तुक, 2/307-308 158. प्रवचनसारोद्धार, द्वार 67/596 159. उत्तराध्ययनसूत्र, 26/8-12 160. वही, 26/21-22, 36-38 161. वही, 26/39-42 162. वही, 26/17-18 163. वही, 26/44-46 164. तिलकाचार्य सामाचारी, पृ. 26 । 165. वही, पृ. 26
पृ. 26 167. वही, पृ. 26 168. वही, पृ. 27 169. वही, पृ. 28 170. वही, पृ. 28-29 171. वही, पृ. 31 172. पुरिसोत्ति संकू, पुरिससरीरं वा, ततो पुरिसातो निप्फण्णा पोरिसी।
नन्दीचूर्णि, पृ. 58 173. पुरुष: प्रमाणमस्याः सा पौरुषी। प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 125 174. पोरिसीमाणमनिययं दिवसनिसावुड्ढिहाणि भावाओ हीणं तिन्नि मुहुतद्ध पंचमा,