________________
4 ... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता
एवं जिनबिम्ब का निर्माण कराने वाला हो, जिनागम एवं चतुर्विध संघ की सेवा हेतु प्रचुर धन का व्यय करने वाला हो, जिसकी भोगाभिलाषा समाप्त हो गयी हो, उत्कृष्ट वैराग्य भावना से अधिवासित हो, गृहस्थ के तीनों मनोरथों को धारण करने वाला हो, उपशान्त स्वभावी हो, कुल की वृद्धाओं, पुत्र, पत्नी, स्वामी आदि के द्वारा अनुज्ञा प्राप्त एवं प्रव्रज्या ग्रहण करने के लिए उत्सुक हो, वही श्रावक ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने योग्य होता है । 1
ब्रह्मचर्यव्रत धारण करने हेतु किन योग्यताओं का होना आवश्यक है ? इससे सम्बन्धित सर्वप्रथम उल्लेख आचारदिनकर में प्राप्त होता है। इससे पूर्ववर्ती या परवर्ती अन्य ग्रन्थों में यह चर्चा लगभग नहीं है । ब्रह्मचर्य व्रत दिलवाने का अधिकारी कौन?
श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार यह व्रतारोपण संस्कार पंचमहाव्रतधारी मुनि द्वारा करवाया जाता है। दिगम्बर - परम्परा में इस व्रत का ग्रहण मुनि अथवा भट्टारक द्वारा करवाया जाता है।
हमें यह चर्चा श्वेताम्बर के आचारदिनकर एवं दिगम्बर के आदिपुराण में उपलब्ध होती है।
ब्रह्मचर्य व्रतग्रहण हेतु मुहूर्त्त विचार
आचार्य वर्धमानसूरि के निर्देशानुसार प्रव्रज्या के लिए जो मुहूर्त्त श्रेष्ठ माने गये हैं उन्हीं मुहूर्तों में ब्रह्मचर्यव्रत स्वीकार करना चाहिए। 2 इस विषयक स्पष्ट वर्णन अध्याय -4 में किया गया है। इसके अतिरिक्त यह चर्चा पढ़ने में नहीं आई है।
ब्रह्मचर्य व्रतग्रहण की विधि
·
आचारदिनकर में ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण की निम्न विधि प्रवेदित है सर्वप्रथम व्रतग्रहण के शुभ दिन व्रत इच्छुक अपने घर पर शान्तिकपौष्टिक कर्म करें। फिर गुरुपूजा एवं संघपूजा करें। उस दिन शिखासूत्र को धारण कर शिर मुण्डन करें। फिर निर्दिष्ट मुहूर्त्त के आने पर व्रतग्राही श्रावक या श्राविका विवाह उत्सव की भाँति उत्तम सवारी पर आरूढ़ होकर गुरु के समीप जाएं।
• जिस स्थान पर व्रत दिलवाया जा रहा हो, वहाँ नन्दीरचना करें। फिर गुरु भगवन्त नन्दी के समक्ष व्रतग्राही को सम्यक्त्व एवं देशविरति चारित्र का आरोपण करवायें। चैत्यवन्दन, दण्डक उच्चारण, खमासमण आदि क्रियाएँ
-