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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 245 लगभग बीस वर्ष की आयु में किया जाता है। नियम से उपसम्पदा के बाद ही वह भिक्षु संघ का सदस्य समझा जाता है।196 यह उपसम्पदा संघ के विशिष्ट योग्यता प्राप्त भिक्षुओं के समक्ष स्वीकार की जाती है। उपसम्पदा ग्रहण की विधि इस प्रकार है197_ सर्वप्रथम उपसम्पदापेक्षी भिक्षु संघ में से उपाध्याय (गुरु) का चयन कर संघ से उपसम्पदा की याचना करता है। फिर संघ के पास जाकर दाहिने कन्धे को खोलकर, बांये कन्धे पर उत्तरासंग धारण कर, भिक्षुओं के चरणों में वन्दना करता है। पश्चात उकडूमुद्रा में हाथ जोड़कर तीन बार कहता है - भंते! संघ से उपसम्पदा पाने की इच्छा करता हूँ, भन्ते! संघ दया करके मेरा उद्धार करे। तत्पश्चात संघ का एक भिक्षु उपसम्पदापेक्षी श्रमण का परिचय देते हुए संघ को सम्बोधित कर कहता है - भन्ते! संघ मेरी सुने। अमुक नामवाला, अमुक नामवाले भिक्षु को उपाध्याय बना, अमुक् नामवाले आयुष्मान का शिष्य, अमुक नामवाला यह पुरुष उपसम्पदा चाहता है। यदि संघ उचित समझे तो अमुक नाम के उपाध्याय के नेतृत्व में अमुक व्यक्ति की उपसम्पदा करे। तब संघ के श्रेष्ठ भिक्षु उपसम्पदापेक्षी से तेरह प्रकार के प्रश्न पूछते हैं - क्या तुम इन तेरह बीमारियों से मुक्त हो ? 1. कोढ़, 2. गण्ड- एक प्रकार का फोड़ा, 3. विलास- एक प्रकार का चर्मरोग, 4. शोथ, 5. मिरगी, 6. तूं मनुष्य है, 7. तूं पुरुष है, 8. तूं स्वतन्त्र है, 9. तूं उऋण है, 10. तूं राजनैतिक नहीं है, 11. तुझे माता-पिता से अनुमति प्राप्त है, 12. तूं पूरे बीस वर्ष का है, और 13. तेरे पास पात्र-चीवर पूर्ण है। साथ ही तेरा नाम क्या है ? तेरे उपाध्याय का नाम क्या है ? आदि प्रश्न भी पूछते हैं। यदि श्रामणेर इन तेरह दोषों से रहित हो तो उपसम्पदा संस्कार कर दिया जाता है। इतनी विधि पूर्ण होने के बाद ही संघ द्वारा नवशिष्य की उपसम्पदा करने का निर्णय किया जाता है। ___ उपसम्पदा प्राप्त बौद्ध भिक्षु के लिए कुछ नियमों का पालन करना भी आवश्यक कहा गया है, भिक्षा मांगना, जीर्ण वस्त्र धारण करना, वृक्ष के पादमूल में निवास करना, गौमूत्र को औषधि के रूप में प्रयुक्त करना, आदि।198 इनके अतिरिक्त चार अकरणीय कर्म बतलाये गये हैं - 1. मैथुन से दूर रहना 2. अदत्त वस्तु ग्रहण न करना 3. हिंसा नहीं करना 4. स्वयं को दिव्यशक्तिमान सिद्ध नहीं करना।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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