________________
उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 219
करते हुए दर्शाया है कि जो दिन-रात खाता रहता है, वह सचमुच सींग और पूँछ रहित पशु ही है। जो लोग दिन के बदले रात में खाते हैं, वे मनुष्य सचमुच हीरे को छोड़कर काँच को ग्रहण करते हैं। दिन के विद्यमान होते हुए भी जो अपने कल्याण की इच्छा से रात में भोजन करते हैं पानी के तालाब (उपजाऊ भूमि) को छोड़कर ऊसर भूमि में बीज बोने जैसा काम करते हैं अर्थात मूर्खतापूर्ण काम करते हैं। 143
हेमचन्द्राचार्य ने पूर्वोक्तक्रम में यह भी निर्दिष्ट किया है कि रात्रिभोजन से परलोक में विविध प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। जो रात्रि में भोजन करता है वह अगले जन्म में उल्लू, कौआ, बिल्ली, गिद्ध, शंबर, सूअर, सर्प, बिच्छू, गोह आदि की निकृष्ट योनि में जन्म लेता है । अतः समझदार और विवेकी जनों को रात्रिभोजन का त्याग अवश्य करना चाहिए | 144 जो भव्य आत्माएँ हमेशा के लिए रात्रिभोजन का त्याग करती हैं, उनकी आत्मा धन्य मानी गई है। रात्रिभोजन के त्यागी को आधी उम्र के उपवास का फल प्राप्त होता है । 145
एक जगह लिखा गया है कि रात्रिभोजन में जो दोष लगते हैं, वे दोष (दिन के समय) अंधेरे में भोजन करने से भी लगते हैं और जो दोष अंधेरे में भोजन करने से लगते हैं, वे ही दोष सँकरे मुखवाले बर्तन में भोजन करने से लगते हैं। क्योंकि रात्रि में सूक्ष्म जीव दिखाई नहीं देते इसलिये रात को बनाया भोजन दिन में ग्रहण करें तो भी वह रात्रिभोजन तुल्य ही माना गया है।
रत्नसंचयप्रकरण में रात्रिभोजन करने से लगने वाले दोषों की चर्चा करते हुए कहा है कि छियानवे भव तक कोई मछुआरा सतत मछलियों की हत्या करे, तो उसे जितना पाप लगता है, उतना पाप एक सरोवर सुखाने से लगता है। एक सौ आठ भव तक सरोवर सुखाने से जितना पाप लगता है, उतना पाप एक दावानल लगाने से लगता है। एक सौ एक भव तक दावानल लगाने से जितना पाप लगता है; उतना पाप एक कुवाणिज्य (खोटा धंधा ) करने से लगता है। एक सौ चवालीस भव तक कुव्यापार करने से जो पाप लगता है, उतना पाप किसी पर एक बार झूठा इल्जाम लगाने से लगता है। एक सौ इक्यावन भव तक झूठा दोषारोपण करने से जितना पाप लगता है, उतना पाप एक बार परस्त्रीगमन से लगता है। एक सौ निन्यानवे भव तक परस्त्रीगमन करने से जितना पाप लगता है, उतना पाप एक बार के रात्रिभोजन से लगता है । 14