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उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 181
हुए देखकर 'सौ' शब्द का तथा तीन बिन्दु (1000) लगे देखकर हजार शब्द का प्रयोग करना अथवा पत्थर आदि की मूर्ति में तथाविध आकार देखकर अरिहन्त
परमात्मा का कथन करना।
4. नाम सत्य जो केवल नाम मात्र से सत्य हो जैसे अकेला होने पर भी किसी का नाम 'कुलवर्धन' हो वह नाम मात्र से सत्य है, भाव से नहीं। इसी प्रकार कोई धन की वृद्धि नहीं करता हो फिर भी उसे धनवर्धन कहना आदि । 5. रूप सत्य जो स्वरूप से सत्य हो जैसे किसी ने किसी परिस्थितिवश साधु वेष धारण किया हो, उसको वेश के आधार पर साधु कहा रूप सत्य है।
6. प्रतीत्य सत्य जो अपेक्षाकृत सत्य हो जैसे अनामिका अंगुली को कनिष्ठा की अपेक्षा से लम्बी और मध्यमा की अपेक्षा से छोटी कहना । 7. व्यवहार सत्य जो भाषा लोकव्यवहार से सत्य मानी जाती हो जैसे मटकी से पानी झर रहा हो तो मटकी झर रही है, ऐसा कहना । चलते हु किसी गाँव में पहुँच गये हो तो गाँव आ गया ऐसा कहना। हालांकि मटकी झरती नहीं है, गाँव एक स्थान से दूसरे स्थान तक चलकर आता नहीं है फिर भी लोक भाषा में वैसा बोला जाने से सत्य है ।
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8. भाव सत्य पाँच वर्ण वाली वस्तु को किसी एक वर्ण की अधिकता की अपेक्षा से एक वर्ण वाली कहना भाव सत्य है जैसे 'बलाका' में पाँच वर्ण होने पर भी शुक्ल वर्ण का आधिक्य होने से उसे सफेद कहना।
सम्बन्ध
9. योग सत्य किसी वस्तु के से व्यक्ति को भी उस नाम से पुकारना जैसे कोई व्यक्ति हमेशा दण्ड रखता हो, पर कभी दण्ड न हो तो भी उसे ‘दण्डी' के नाम से पुकारना ।
10. औपम्य सत्य उपचार से उपमेय को उपमान के रूप में पुकारना बड़े तालाब को 'समुद्र' कहना, अत्यन्त सुन्दर एवं सौम्य चेहरे को
जैसे
बहुत
'चन्द्रमा' कहना ।
जैन मुनि पूर्वोक्त दस प्रकार की भाषा का प्रयोग प्रसंगानुसार कर सकता है। असत्य भाषा भी निम्न दस प्रकार की प्रज्ञप्त
(ii) असत्य भाषा
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