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प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा...97
आरोपण हो चुका है' इस सम्बन्ध में कुछ कहने की अनुमति प्राप्त करें । • तीसरे खमासमण द्वारा आपने 'सर्वविरतिव्रत में आरोपित किया है या नहीं" इसका निर्णय करें। • चौथे खमासमण द्वारा सर्वसाधुओं के समक्ष अंगीकृतव्रत को निवेदित करने की अनुज्ञा प्राप्त करें। • पाँचवें खमासमण द्वारा गृहीतव्रत के विषय में सकल संघ को ज्ञापित किया जाता है। इस समय दीक्षित शिष्य समवसरण की तीन प्रदक्षिणा देता है और सकल संघ वर्धापना करते हुए उन पर तीन बार अक्षत उछालते हैं। वर्तमान सामाचारी के अनुसार साधु-साध्वी वासचूर्ण एवं श्रावक-श्राविका अक्षत का निक्षेपण करते हैं। • छठे खमासमण द्वारा सर्वविरति सामायिकव्रत को (सर्वानुमतिपूर्वक) अंगीकार करने हेतु कायोत्सर्ग करने की अनुमति प्राप्त करें। • सातवें खमासमण द्वारा सर्वविरति सामायिकव्रत के आरोपणार्थ एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करे । पुनः एक खमासमण द्वारा सर्वविरति सामायिकव्रत को स्वयं में स्थिर करने हेतु अनुमति पूर्वक एक 'लोगस्ससूत्र' का कायोत्सर्ग करें।
नामकरण
उसके बाद एक खमासमणपूर्वक शिष्य द्वारा निवेदन किये जाने पर गुरु ग्रहगोचर की शुद्धि का ध्यान रखते हुए तथा दीक्षित के मस्तक पर वासचूर्ण का निक्षेप करते हुए उसका यथोचित नामकरण करें।
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फिर नूतन शिष्य सभी ज्येष्ठ साधुओं को वन्दन करें। उपस्थित श्रावकश्राविका वर्ग भी दीक्षित को वन्दन करें। तदनन्तर गुरु महाराज संवेगादि भाव की वृद्धि करने वाला धर्मोपदेश दें। उस दिन दीक्षित के कुटुम्बीजन यथाशक्ति साधर्मी वात्सल्य करें।
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक की तपागच्छ परम्परा में दीक्षा विधि का स्वरूप लगभग पूर्ववत जानना चाहिए।
विशेष अन्तर आलापक पाठों को लेकर है। इसमें सर्वविरति सामायिक आरोवणी, नन्दी करावणी, देववन्दावणी ऐसे मरुगुर्जर भाषा के शब्दों का प्रयोग है जबकि खरतरगच्छ आम्नाय में आलापकपाठ प्राकृत भाषा में बोले जाते हैं । जैसे कि सव्वविरइसामाइय आरोवणत्थं चेइयाइं वंदावेह, सव्वविरइ सामाइयसुत्तं उच्चारावेह इत्यादि।
दूसरा मतभेद देववन्दन के समय कही जाने वाली स्तुतियों के सम्बन्ध में है। खरतरगच्छ में 18 स्तुतियों पूर्वक देववन्दन करते हैं जबकि तपागच्छ में