________________
प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 95
* दीक्षा, उपस्थापना आदि में प्रदक्षिणा देते समय नवकार गिनने संबंधी दो परम्पराएँ चल रही है। एक परम्परा के अनुसार चौमुख दर्शन करते समय हर दिशा में एक नवकार गिना जाता है। तदनुसार एक प्रदक्षिणा में चार नवकार गिने जाते हैं। जबकि दूसरी परम्परा में एक पूरी प्रदक्षिणा में एक नवकार गिना जाता है। खरतरगच्छ की वर्तमान परम्परा में विधि ग्रन्थों के अनुसार एक प्रदक्षिणा में एक नवकार गिना जाता है
उसके बाद व्रतग्राही की योग्यता - अयोग्यता का निर्णय करने हेतु गुरु महाराज पूर्व निर्दिष्ट विधिपूर्वक पुष्पों या अक्षतों के क्षेपण द्वारा परीक्षा करें।
देववन्दन - उसके बाद व्रतग्राही शिष्य ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर एक खमासमणसूत्रपूर्वक वन्दन कर गुरु से सर्वविरतिसामायिक के आरोपणार्थ चैत्यवन्दन करवाने का निवेदन करें। तब गुरु-शिष्य के मस्तक पर वासचूर्ण का निक्षेप करें। फिर गुरु भगवन्त जिनमें अक्षर और स्वर क्रमश: बढ़ते हुए हों ऐसी चार स्तुतियाँ एवं शान्तिदेवता आदि 14 प्रकार के देवी-देवताओं ऐसे कुल 18 स्तुतियों पूर्वक देववन्दन करवायें।
विधिमार्गप्रपा की सामाचारी के अनुसार देववन्दन के अन्तर्गत शक्रस्तव और परमेष्ठीस्तव सभीजन उच्च स्वर से पढ़ते हैं जबकि वर्तमान सामाचारी में देववन्दन विधि के सूत्र पाठ गुरु भगवन्त या अधिकृत शिष्य बोलते हैं।
वेशअर्पण एवं वेशधारण तदनन्तर दीक्षाग्राही शिष्य गुरु को एक खमासमण पूर्वक वन्दन कर रजोहरणादि वेश समर्पित करने का निवेदन करें। उस समय गुरु महाराज पूर्व या उत्तरदिशा की ओर मुख करके, रजोहरण की दसिया को शिष्य के दाहिनी भुजा की ओर करते हुए नमस्कारमन्त्र के स्मरण पूर्वक साधु वेश समर्पित करें।
-
तत्पश्चात शिष्य ईशानकोण में गृहस्थ वेश का त्याग कर, मुनिवेश को धारण करें तथा कुछ केशराशि को छोड़कर मस्तक का मुण्डन करवायें। यह पाठ विधिमार्गप्रपा में नहीं है, किन्तु वर्तमान परम्परा के आधार पर यहाँ निर्दिष्ट किया है।
चोटीग्रहण - तदनन्तर नूतन दीक्षित त्रिगड़े की प्रदक्षिणा देते हुए गुरु को खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन कर चोटी ग्रहण करने का निवेदन करें। तब शुभ लग्न वेला के समुपस्थित होने पर शिष्य अर्धावनत मुद्रा में खड़ा रहे और गुरु